सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-24
तेलुगु सरदार जिन्होंने वारंगल को दिल्ली सल्तनत के कब्जे से मुक्त कराया…
कपाया नायक के नाम से दक्षिण भारत में भी कुछ ही लोग परिचित हैं।
कपाया नायक तेलुगु नायकों / सरदारों के समूह के नेता थे, जिन्होंने वारंगल को दिल्ली सल्तनत- तुगलक वंश के चंगुल से मुक्त कराया था।
दिल्ली पर उस समय तुगलक वंश का शासन था। सन् 1336 में उन्होंने वारंगल या तेलंगाना की सीमाओं से तुगलकों को बाहर खदेड़ दिया था। तत्पश्चात अगले 30 वर्षों तक कपाया नायक ने स्वाभिमान से तेलंगाना पर राज किया।
कपाया नायक एक मुसुनूरी नायक थे। ये ककातिया सेना में सेनानायक होते थे। ककातिया वंश का प्रारम्भ दुर्जय नाम के एक योद्धा से माना जाता है। वे पहले चालुक्य वंश के ठिकानेदार या जागीरदार होते थे।
बेटराजा (प्रथम) पहले ककातिया सरदार थे जिन्होंने वारंगल के निकट हनमकोंडा में 30 वर्षों तक चालुक्य वंश की छत्रछाया में राज किया।
वर्ष 1163 में छठे ककातिया सरदार प्रताप रूद्र ने स्वयं को चालुक्यों से अलग और आजाद घोषित कर दिया। उस समय तक चालुक्य वंश कमजोर हो चुका था। प्रताप रूद्र ने ओरुगल्लु में सन् 1158 से सन् 1195 तक राज किया।
काकतीय वंश का एक जाना माना नाम रुद्रमादेवी है, जिन्होंने सन् 1262 से सन् 1289 तक तेलंगाना पर राज किया। वे तेलुगु क्षेत्रों पर राज करने वाली एक मात्र रानी थीं।