Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog श्रुतम् ककातिया और कपाया नायक-2
श्रुतम्

ककातिया और कपाया नायक-2

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-24

*तेलुगु सरदार जिन्होंने वारंगल को दिल्ली सल्तनत के कब्जे से मुक्त कराया…।

सन् 1325 में अपने पिता गयासुद्दीन तुगलक और अपने भाई की धोखे से हत्या करवाने के बाद मोहम्मद बिन तुगलक के नाम से उलूग खान दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

वारंगल के अतिरिक्त तुगलक ने मालाबार, मदुरई और कर्नाटक के दक्षिणी छोर तक के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। इन सभी क्षेत्रों में उसने अपने सूबेदार नियुक्त किए और फौजें छोड़ दीं, ताकि किसी भी विद्रोह को दबाया जा सके और कर इकट्ठा किया जा सके।

अधिकतर दक्षिण भारतीय राज्य पलायम पद्धति से चलते थे। एक राज्य अनेक पलायम में बंटा हुआ होता था और हर पलायम का अधिपति एक नायक होता था। पलायम के प्रशासनिक, वित्तीय, न्यायिक और क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की जिम्मेदारी नायक की ही होती थी। नायक को एक स्थाई सेना भी रखनी होती थी जो कि आवश्यकता पड़ने पर अपने नायक के अधिपति राजा के लिए युद्ध करती थी।

ककातिया राज्य भी पलायम पद्धति से ही चलता था। प्रताप रूद्र के राज्य काल में 75 नायक थे। उनमें से एक थे मुसुनूरी प्रलया नायक।
पीथापुरम के निकट मिले सन् 1330 के एक ताम्रपत्र से पता लगता है कि तुगलक फौजों ने तेलुगु प्रदेश में कितना नरसंहार और विध्वंस किया था। इसी ताम्रपत्र के अनुसार वारंगल के मुस्लिम आक्रमणकारी राक्षसी प्रवृत्ति के थे। इस ताम्रपत्र में नायक को समाज में शांति और समृद्धि लाने वाला बताया गया है।

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