श्रुतम्

कल्याण सिंह गुर्जर-2

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-25

जिन्होंने सन् 1822-24 में अपने पराक्रम से अंग्रेजों को दहला दिया था…

19वीं शताब्दी के आसपास तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग संपूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य कर लिया था। अधिकतर राज्यों पर उनका पूरा आधिपत्य था और जहाँ नहीं था, वहाँ के राजा अंग्रेजों की अनुमति से ही राज चलाते थे। अर्थात कठपूतली बने हुए थे।

सन् 1857 को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समय बताया जाता है, परंतु इससे पहले भी सन् 1822 और 24 के आसपास देश के एक बहुत बड़े भाग में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह हो गया था।

सहारनपुर और आसपास के क्षेत्र का नेतृत्व राजा विजयसिंह कुंजा और उनके सेनापति कल्याण सिंह गुर्जर कर रहे थे। राजा विजयसिंह कुंजा बहादुरपुर नाम की रियासत के राजा थे। उन्होंने अंग्रेजों से आजादी की घोषणा कर दी और कुंजा बहादुरपुर की गढ़ी पर अपना कब्जा कर लिया।

अंग्रेजों ने पूरे भारत में जगह-जगह पर अपनी छावनियाँ बना रखी थीं। उत्तर भारत में ये छावनियाँ सहारनपुर और मेरठ में थीं। उस समय इस सम्पूर्ण क्षेत्र का मजिस्ट्रेट प्रिंडिल (Prindil) था।

कैसल्स इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ इंडिया पुस्तक में प्रिंडिल कहता है (Magistrate Prindil quotes in Kessel’s book Illustrated History of India :–
“सहारनपुर क्षेत्र में लगभग 8 सौ गुर्जरों ने एक कुंवर विजय सिंह, जो स्वयं को राजा कहता है- के नेतृत्व में कुंजा की गढ़ी पर कब्जा कर लिया है, और गुर्जर उत्पात मचा रहे हैं। कुंवर खुद को ‘कल्कि’ कहता है, जो कि हिंदुओं के लिए अंतिम अवतार हैं। वह कहता है कि उसका अवतरण देश को विधर्मी विदेशियों से मुक्त कराने के लिए ही हुआ है….।”

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