सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-25
जिन्होंने सन् 1822-24 में अपने पराक्रम से अंग्रेजों को दहला दिया था…
कैसल्स इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ इंडिया के अनुसार मजिस्ट्रेट प्रिंडिल की मदद के लिए कैप्टन यंग की कमान में सिरमौर बटालियन भेजी गई। इसके साथ बंगाल सिविल सर्विस का फ्रेडरिक शोर भी था। सिकंदरपुर में प्रिंडिल अपने सैनिकों के साथ इस बटालियन से मिला। उसके साथ इंजीनियर्स कॉर्प्स के लेफ्टिनेंट डीबूड और डॉक्टर रॉयल भी थे।
जब राजा विजय सिंह और कल्याण सिंह को कुंजा बहादुरपुर की ओर बढ़ती हुई इस अंग्रेजी सेना का पता चला तो वे लड़ने के लिए तैयार हो गए। गढ़ी के अंदर मौजूद छोटी सी सेना में से कुछ गुर्जर योद्धा कुंजा गाँव की सीमा के पास तैनात हो गए। अंग्रेजी फौज आधुनिक हथियारों से लैस थी जबकि विद्रोही सेना के पास पुरानी बंदूकें और परंपरागत शस्त्र थे। गाँव की सीमा के पास दोनों फौजों में भयंकर भिड़ंत हुई। अनेक गुर्जरों ने यहाँ पर वीरगति पाई। अंग्रेजों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा।
कैप्टन यंग का लक्ष्य था कि किसी भी तरह गढ़ी में दाखिल हुआ जाए, इसके लिए उसने एक विशाल पेड़ को काटकर दुरमुट की तरह इस्तेमाल करते हुए गढ़ी का दरवाजा तोड़ने का निश्चय किया।
अंग्रेजों की ऐसी हर कोशिश पर अंदर से विद्रोही सैनिक जवाब देते थे और कैप्टन यंग का प्रयास बार बार विफल हो रहा था। दरवाजे में बने हुये छोटे-छोटे आलों से अंदर मौजूद विद्रोही सैनिक लंबे भालों से अंग्रेजों के प्रयास विफल कर रहे थे। काफी देर के बाद अन्ततोगत्वा अंग्रेज दरवाजे का एक हिस्सा तोड़ने में सफल हो गए।
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