सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 15
स्वतंत्रता सेनानी जो मात्र 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान हुई…
कनक लता बरूआ एक संयुक्त परिवार में रहती थीं। जहाँ उनके दादा और पाँच चाचा अपने-अपने परिवार के साथ इकट्ठा ही रहते थे।
उनके दादा स्वतंत्रता सेनानियों से मिलने के उनके प्रयासों का सदैव विरोध करते थे और उन्हें ऐसी बैठकों में जाने की अनुमति नहीं देते थे। परंतु कनक लता बरूआ की सौतेली माँ उनकी बात मानकर चोरी-छिपे उन्हें ऐसा करने देती थीं।
इन्हीं दिनों असम के सांस्कृतिक प्रतीक, कवि और स्वतंत्रता सेनानी ज्योति प्रसाद अग्रवाल ने तेजपुर में ‘मृत्यु वाहिनी’ की स्थापना की। इसका उद्देश्य क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन को मजबूती देना था।
कनक लता बरूआ गोहपुर में रहते हुए अपने साथियों के साथ इस उद्देश्य के लिए ‘मृत्यु वाहिनी के गोहपुर प्रकल्प’ से जुड़ गईं।