कनक लता बरूआ-5

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 15

स्वतंत्रता सेनानी जो मात्र 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान हुई…

20 सितंबर, 1942 को मृत्यु वाहिनी ने गोहपुर पुलिस थाने पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निश्चय किया। निहत्थे और शांतिप्रिय लोगों ने कनक लता बरूआ के नेतृत्व में एक जुलूस के रूप में पुलिस थाने की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया। कनक लता ने अपने हाथ में झंडा उठाया हुआ था, और अपने साथियों को ललकारती हुई वे सबसे आगे चल रही थी।
पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ने से मना किया, और नहीं मानने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी।
बिना कोई परवाह किए जुलूस आगे बढ़ता रहा। अंग्रेज पुलिस ने बंदूकें तान लीं पर देशभक्तों का जुलूस सहजता से यथावत चलता रहा। गोहपुर थाने की ओर बढ़ता हुआ ये जुलूस देशभक्ति से ओतप्रोत था, और युवा अपनी जान की परवाह किए बिना निरंतर आगे बढ़ रहे थे।

‘पुलिस थाने में पहुँचकर कनक लता बरुआ झंडा लगाने ही वाली थीं कि पुलिस ने गोली चला दी। कनक लता को गोली लगी और वे वहीं देश के लिए शहीद हो गईं।’
जुलूस में सम्मिलित देशभक्तों ने झंडा जमीन पर नहीं गिरने दिया, और तुरंत मुकुंद काकोती ने झंडा अपने हाथ में ले लिया। पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी।
लोग झंडा लेने के लिए आगे बढ़ते रहे, और पुलिस की गोली से गिरते रहे..। अन्ततोगत्वा रमापति राजखोवा ने गोहपुर थाने पर झंडा फहरा ही दिया।

कनक लता बरुआ अपनी शहादत के समय मात्र 17 वर्ष की थीं। वीरांगना कनक लता बरुआ को हमारा कोटि कोटि नमन्।

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