सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-21
मराठा नौसेनाध्यक्ष जिन्हें युरोपीय नौसैनिक शक्तियां कभी हरा नहीं पाईं…
कान्होजी आंग्रे का नाम महाराष्ट्र में तो काफी प्रसिद्ध है। परंतु महाराष्ट्र के बाहर उन्हें जानने वाले बहुत कम हैं। क्या आप जानते हैं कि भारतीय समुद्री सीमा में उन्होंने कई बार ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली नौसेनाओं से जमकर लोहा लिया और उन्हें सुदूर खदेड़ दिया।
कान्होजी आंग्रे चालीस वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के पश्चिमी तट के रक्षक बने रहे। उनके नाम से ही यूरोपियन नौसैनिक काँपने लगते थे।
सूरत से लेकर दक्षिणी कोंकण के सुदूर तटों तक भारतीय समुद्री सीमा के वे एकछत्र अधिपति थे।
इस वीर नौसेनाध्यक्ष ने तत्समय मराठों की और भारत की नौसेना का रुतबा समुद्र में दूर-दूर तक बढ़ाया- जब लहरों पर मुगल, अंग्रेज, पुर्तगाली और डच नौसेनाओं का डंका बजता था। अपनी मृत्युपर्यन्त वे किसी से भी पराजित नहीं हुए। ऐसे अपराजेय मराठा नौसेनाध्यक्ष थे कन्होजी आंग्रे!
कान्होजी आंग्रे का भय इतना था कि शत्रुओं ने उन्हें ‘भुतहा समुद्री डाकू’ के नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने अंग्रेज, डच और पुर्तगालियों के कई जहाज अपने कब्जे में कर लिए थे।