सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 17
मात्र 19 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे, जिन्हें सरदार भगत सिंह अपना गुरु मानते थे…।
“आज विदेशी धरती पर गदर की शुरुआत हो रही है, हमारी भाषा में कहें तो अंग्रेजी राज के विरुद्ध लड़ाई! हमारा नाम क्या है? गदर …. हमारा काम क्या है? गदर…. क्रांति कहाँ होगी? भारत में…. शीघ्र ही वह समय आएगा जब कलम और स्याही का स्थान राइफलें और लहू ले लेंगे।”
ये थे करतार सिंह सराभा के ओजस्वी शब्द…..।
करतार सिंह सराभा एक सिक्ख स्वतंत्रता सेनानी थे। मात्र 17 वर्ष की आयु में विदेशी धरती पर उन्होंने गदर पार्टी का सदस्य बनकर स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में अपनी ओर से पहली आहुति दी थी।
वे स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने के लिए भारत लौटकर आ गए थे। पंजाब में स्वतंत्रता संग्राम की प्रचण्ड लपटों को वे तब तक हवा देते रहे जब तक कि अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ नहीं लिया। अन्ततोगत्वा मात्र 19 वर्ष की आयु में वे मातृभूमि के लिए शहीद हो गए।
बहुत विडम्बना और दुख की बात है कि आज सामान्य भारतीय उनके विषय में अधिक नहीं जानते।
करतार सिंह सराभा का जन्म 24 मई, 1896 को लुधियाना में साहिब कौर और मंगल सिंह के घर एक जट सिक्ख परिवार में हुआ था।
जब वे बहुत छोटे थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनका लालन-पालन उनके दादाजी बदन सिंह ग्रेवाल ने किया। आठवीं कक्षा तक वे लुधियाना में ही पढ़े और फिर अपने चाचा के पास रहकर उन्होंने दसवीं कक्षा पास की।
उच्च शिक्षा के लिए उनके दादाजी ने उन्हें विदेश भेज दिया, जहाँ उन्होंने 1912 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में प्रवेश लिया। कुछ ऐतिहासिक सूत्र यह भी कहते हैं कि यद्यपि उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था परंतु वे पढ़ाई की जगह एक मिल में काम करने लगे थे।
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