सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 17
मात्र 19 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे, जिन्हें सरदार भगत सिंह अपना गुरु मानते थे…।
गदर पार्टी ने एक विज्ञापन भी निकाला जिसमें लिखा हुआ था:-
बहादुर सिपाही चाहिए……
कार्य: भारत में गदर फैलाना।
तनख्वाह: मौत
कीमत: बलिदान
पेंशन: आजादी
जंग का मैदान: भारत।
करतार सिंह सराभा ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और हरदयाल जी के साथ मिलकर क्रान्तिकारी समाचार पत्र ‘द गदर’ निकालने लगे। इस पत्र के गरुमुखी (पंजाबी) संस्करण का सारा कार्य करतार सिंह ही देखते थे। वे इसमें लेख और देशभक्ति की कविताएँ भी लिखते थे।
विदेश में रह रहे भारतीयों से जल्दी ही गदर पार्टी को काफी समर्थन मिलने लगा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद गदर पार्टी की योजना भारत आकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष आरम्भ करने की थी।
सन् 1915 में गदर पार्टी ने पंजाब में कई जगह विद्रोह के स्वरों को हवा देनी आरम्भ कर दी। सारे देश से स्वतंत्रता सेनानी गदर पार्टी से जुड़ कर आजादी के आंदोलन को आगे ले जाने के इच्छुक थे।