सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 17
मात्र 19 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे, जिन्हें सरदार भगत सिंह अपना गुरु मानते थे…।
गदर पार्टी के गिरफ्तार इन क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया। इसी वजह से इसे ‘प्रथम लाहौर षड्यंत्र केस’ कहा जाता है। गिरफ्तारी से बचने के लिए बहुत सारे गदर पार्टी के सदस्य और नेता भूमिगत हो गए, अथवा भारत छोड़कर बाहर चले गए।
- उस केस में कुल मिलाकर 291 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मुख्य षड्यंत्रकारी माना गया। ये सब गदर पार्टी के ही सक्रिय सदस्य थे।
- इनमें से 42 लोगों को मृत्युदंड दिया गया, जबकि 114 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
• 93 स्वतंत्रता सेनानियों को अलग-अलग अवधि के कारावास की सजा सुनाई गई।
• 42 लोगों को इस मामले में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
13 सितंबर 1915 को करतार सिंह सराभा को फाँसी की सजा सुनाई गई। 16 नवंबर 1915 को लाहौर की सेंट्रल जेल में करतार सिंह सराभा को फाँसी दे दी गई। वे उस समय मात्र 19 वर्ष के थे।