सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा- 28
जिन्होंने मात्र 50 सैनिकों की फौज के सहारे एक विशाल अंग्रेजी फौज से टक्कर ली…
स्थान: मध्यप्रदेश में नरसिंहगढ़ के पास सीहोर नामक जगह।
“कुंवर साहब आप दो तलवारें क्यों रखते हैं?” ब्रिटिश कंटोनमेंट के इंचार्ज मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह से पूछा।
“एक तलवार उन भारतीयों के सिर काटने के लिए है जो देश के प्रति गद्दार हैं और दूसरी अंग्रेजों के लिए है जो छल, कपट और शोषण करते है,” कुंवर चैन सिंह बोले ।
मैडॉक यह सुनकर यकायक झटका खा गया, ऐसा स्पष्ट सपाट उत्तर एक ब्रिटिश ऑफिसर के सामने बेहद कड़क था। परंतु मैडॉक ने अपने भाव को दबाया।
आखिर कुंवर चैन सिंह कौन थे?
मैडॉक और इस राजपूत राजकुमार के मिलने की वजह क्या थी? हमारे इतिहास की पुस्तकें आपको इस बहादुर की कहानी नहीं बताती हैं, जिन्होंने मात्र पचास सैनिकों के साथ अंग्रेजों की विशाल फौज का सामना किया था।
उन्होंने कभी भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सामने अपना सिर नहीं झुकाया और मात्र 24 वर्ष की आयु में जून,1824 में सीहोर की लड़ाई में अपने पचास सैनिकों के साथ वीरगति पाई। इस युद्ध में चैन सिंह ने अपनी अंतिम साँस तक लड़ते हुए 25 अंग्रेजी सैनिकों को अपने हाथों मौत के घाट उतारा।