सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा- 28
जिन्होंने मात्र 50 सैनिकों की फौज के सहारे एक विशाल अंग्रेजी फौज से टक्कर ली…
श्रीकृष्ण सरला ने अपनी पुस्तक इंडियन रिवॉल्यूशनरीज: ए कंप्रिहेंसिव स्टडी 1757 से 1961, वॉल्यूम-1. में लिखा है कि-
“जब कुंवर चैन सिंह ने देखा कि एक तोपची अपनी तोप दागने ही वाला है तो वह एकदम से आगे बढ़े, और उसकी गर्दन पर जोरदार प्रहार किया। प्रहार से तोपची की गर्दन धड़ से अलग हो गई, और चैन सिंह की तलवार तोप से टकराई जिससे तोप का भी एक हिस्सा टूट गया। अंग्रेज फौजियों और चैन सिंह की छोटी सी सेना के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। शेरू ने कई अंग्रेज सैनिकों को घायल कर दिया और अंत में शहीद हो गया।”
“अंग्रेजों की बड़ी संख्या के कारण चैन सिंह अपने अधिकतर वफादार सैनिकों को खो चुके थे। बचे हुये अपने दो बहादुर सैनिकों को साथ लेकर लड़ते-लड़ते वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ आजकल सीहोर का दशहरा मैदान है।”
“अंत में चैन सिंह अकेले बचे। बुरी तरह से घायल होने के उपरांत भी उन्होंने अपने हाथों से 25 ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतारा।”