Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog पुण्यतिथि राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित मनोज चौहान “5 अगस्त/पुण्य-तिथि’
पुण्यतिथि व्यक्ति विशेष

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित मनोज चौहान “5 अगस्त/पुण्य-तिथि’


राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित मनोज चौहान “5 अगस्त/पुण्य-तिथि’

इंदौर शहर कान (कान्हा) नदी के किनारे बसा है। यद्यपि बढ़ते शहरीकरण और प्रदूषण के कारण अब वह सिकुड़ कर एक नाले जैसी रह गयी है। नदी के तट पर धनपतियों की विशाल अट्टालिकाओं के साथ-साथ निर्धन और मध्यमवर्गीय परिवारों की बस्तियाँ भी हैं। वह एक अगस्त, 2005 की काली रात थी, जब इन्दौर और उसके आसपास का क्षेत्र भीषण वर्षा की चपेट में था। सब लोग गहरी नींद में थे; पर भगवान इन्द्र न जाने क्यों अपना पूरा क्रोध प्रकट करने को आतुर थे।

कच्चे-पक्के मकानों की ऐसी ही एक बस्ती का नाम है मारुति नगर। वह अपेक्षाकृत कुछ नीचे की ओर बसी है। वर्षा के कारण जब नगर की नालियाँ उफनने लगीं, तो सारा पानी इस मारुतिनगर की ओर ही आ गया। थोड़ी ही देर में पानी ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया मानो वह इस बस्ती को डुबा ही देगा। ऐसे में वहाँ हाहाकार मचना ही था। सब लोग जागकर अपने सामान, बच्चों और पशुओं की सुरक्षा में लग गये।

पर उस बस्ती में मनोज चौहान नामक एक 17 वर्षीय नवयुवक भी था। वह वहाँ लगने वाली शाखा का मुख्यशिक्षक था। उसके घर की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। पिता मोहल्ले में ही छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे। मनोज की माँ भी कुछ परिवारों में घरेलू काम कर कुछ धन जुटा लेती थीं। इस प्रकार गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी।

मनोज अत्यधिक उत्साही एवं सेवाभावी नवयुवक था। शाखा के संस्कार उसके आचरण में प्रकट होते थे। बस्ती में किसी पर कोई भी संकट हो, वह सबसे आगे आकर वहाँ सहायता में जुट जाता था। यद्यपि वह स्वयं घातक हृदयरोग से पीड़ित था। उसके हृदय के दोनों वाल्व खराब होने के कारण चिकित्सकों ने उसे अत्यधिक परिश्रम से मना किया था; पर मनोज निश्चिन्त भाव से शाखावेश पहनकर बस्ती वालों की सेवा में लगा रहता था।

बस्ती में पानी भरने से जब हाहाकार मचा, तो मनोज के लिए शान्त रहना असम्भव था। उसने अपने परिवार को ऊँचे स्थान पर जाने को कहा और स्वयं पानी में फँसे लोगों को निकालने लगा। उसने 30 लोगों की प्राणरक्षा की और अनेक परिवारों का सामान भी निकाला। मनोज के साथ उसकी शाखा के सब स्वयंसेवक भी जुट गये। पूरी बस्ती मनोज का साहस देखकर दंग थी। इस प्रकार पूरी रात बीत गयी। मनोज की माँ ने कई बार उसे पुकारा, उसे याद भी दिलाया कि उसे अत्यधिक परिश्रम की मनाही है; पर मनोज की प्राथमिकता आज केवल बस्ती की रक्षा ही थी।

सारी रात के इस परिश्रम से मनोज के फेफड़ों में वर्षा का गन्दा पानी भर गया। अगले दिन लोगों ने बेहोशी की हालत में उसे चिकित्सालय में भर्ती कराया। उसे भीषण निमोनिया हो चुका था। वहाँ काफी प्रयासों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका। 5 अगस्त 2005 को उसने प्राण त्याग दिये। मृत्यु के बाद उसकी शाखा वाली निकर की जेब से बस्ती के निर्धन परिवारों की सूची मिली, जिन्हें कम्बल, बर्तन, दवा आदि की आवश्यकता थी।

उसके इस सेवाकार्य की चर्चा पूरे प्रदेश में फैल गयी। 26 जनवरी, 2006 को गणतन्त्र दिवस के अवसर राष्ट्रपति डा0 अब्दुल कलाम ने मनोज चौहान के कार्य को स्मरण करते हुए उसे मरणोपरान्त ‘राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार’ से सम्मानित किया।

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