मुत्तुस्वामी दीक्षितार (मुत्तुस्वामी दीक्षित) “24 मार्च/जन्मदिन”
मुथुस्वामी दीक्षित का जन्म 24 मार्च, 1775 को तमिनाडु के तंजावुर जिले के तिरुवरुर नामक स्थान पर हुआ था। इनका सम्बन्ध एक परम्परावादी तमिल ऐय्यर ब्राह्मण परिवार से था। इनके पिता का नाम रामास्वामी दीक्षितार और मां का नाम सुब्बम्मा था। ये अपने माता-पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनके दो छोटे भाई बालुस्वामी और चिन्नास्वामी थे तथा इनकी एक बहन भी थी, जिसका नाम बालाम्बल था।
मां सुब्बम्मा के कथनानुसार इनके बेटे का जन्म मन्मथ वर्ष के फागुन महीने के कृतिका नक्षत्र में हुआ था। जैसा की इनका जन्म माता-पिता द्वारा वैथीस्वरन कोइल मंदिर में कई वर्षों के तपस्या के परिणाम स्वरूप हुआ। इस कारण से इनका नामकरण भी मंदिर के देवता मुथुकुमार स्वामी के नाम पर ही किया गया था।
ब्राह्मण शिक्षा परम्परा को मन में रखकर, मुत्तु स्वामि ने सङ्स्कृत भाषा, वेद और अन्य मुख्य धार्मिक ग्रन्थों को सीखा व उनका गहन अध्ययन किया। उनको प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता से मिली थी। कुछ समय बाद मुत्तु स्वामि संगीत सीखने हेतु महान् सन्त चिदम्बरनाथ योगी के साथ बनारस या वाराणसी गए व वहां 5 साल तक सीखने व अध्ययन का वह दौर चलता रहा। गुरु ने उन्हें मन्त्रोपदेश दिया व उनको हिन्दुस्तानी संगीत सिखाया। गुरु के देहान्त के बाद मुत्तु स्वामि दक्षिण भारत को लौटे। जब तब वह चिदम्बरनाथ योगी के साथ रहे, उन्होंने उत्तर भारत में काफी भ्रमण किया व काफी कुछ सीखने को मिला। अध्ययन व पठन-पाठन के दौरान उनके गुरु ने उन्हें एक विशेष वीणा भी दी थी। मुत्तु स्वामि के गुरु चिदम्बरनाथ योगी की समाधि के दर्शन आज भी श्री चक्र लिंगेश्वर मन्दिर, हनुमान घाट, वाराणसी में किया जा सकता है
मुत्तुस्वामि ने कई तीर्थों व मन्दिरों का भ्रमण किया व देवी – देवताओं के दर्शन किए। उन्होंने भगवान मुरुगन या मुरुगा या कार्त्तिकेय, जो तिरुत्तणी के अधिपति हैं का सैर भी किया था और कई गीत उनकी प्रशंसा में रच डाले। तिरुत्तणी मे उन्होंने पहली कृति, “श्री नाथादि गुरुगुहो जयति” को रचा। यह गीत मायामालवगौलम् राग व आदि ताल में रचा गया है। उसके बाद उन्होंने सारे प्रसिद्ध मन्दिरों का सैर किया। भारत, सिय्लोन और नेपाल के कई मन्दिरों में भी तीर्थाटन किया।
उन्होंने वहां सभी मन्दिरों में स्थित अधिष्ठिता देवी व देवताओं की प्रशंसा में कई कृतियां रची। मुत्तु स्वामि दीक्षितर ने 3000 से भी अधिक ऐसे गीतों की रचना की, जो देव-प्रशंसा पर आधारित थी या किसी नेक भावना पर आधारित थीं । उन्होंने कई कृतियां रची जैसे नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति, शिव नवावरणम् कृति, पञ्चलिङ्ग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि-आदि। मुत्तु स्वामि ने अपनी सभी रचनाओं में भाव , राग व ताल आदि का विशेष उल्लेखन किया है। मुत्तु स्वामि दीक्षितर् को उनके हस्ताक्षर (pen name) ‘गुरुगुह’ के नाम से भी जाना जाता है। उसकि सारी रचनऐं चौक् काल मे रची गई है। उनकि कृति “बालगोपल” में वह वैणिक गायक नाम से प्रसिद्ध हैं।
इनके प्रमुख शिष्यों में शिवानंदम, पोंनाय्या, चिन्नाय्या और वादिवेलु थे। इनके शागिर्दों ने बाद में इनके सम्मान में एक ‘नवरत्न माला’ की रचना की, जिसने आगे चलकर भरतनाट्यम के माध्यम से भातीय शास्त्रीय नृत्य के निर्माण में मुख्य भूमिका निभायी।
21 अक्टूबर, 1835, दीपावली की अद्भुत , दिव्य व पावन वेला थी , मुत्तु स्वामि दीक्षितर् ने हर रोज की तरह जैसा पूजा-प्रार्थना किया व तत्पश्चात उन्होंने अपने विद्यार्थियों को “मीनाक्षी मे मुदम् देहि” गीत गाने के लिए कहा था। यह गीत पूर्वी कल्याणी राग मे रचा गया था। वे आगे भी कई गीत गाते रहे , जैसे ही उन्होंने “मीन लोचनि पाश मोचनि” गान शुरु किया तभी मुत्तु स्वामि ने अपने हाथों को उठाते हुए “शिवे पाहि” (इसका अर्थ हे भगवान ! माफ़ करना मुझे !) कहकर दिवंगत हो गए। उनकी समाधि एट्टैय्यापुरम (यह महाकवि सुब्रह्मण्यम भारति का जन्म स्थल भी है) मे है । यह स्थल कोइल्पट्टी और टुटीकोरिन के पास है।