परिश्रम के अवतार ओमप्रकाशजी “30 अगस्त/जन्म-दिवस”
उ.प्र. में संघ विचार के हर काम को मजबूत करने वाले श्री ओमप्रकाशजी का जन्म 30 अगस्त, 1927 को पलवल (हरियाणा) में श्री कन्हैयालालजी तथा श्रीमती गेंदी देवी के घर में हुआ था। उनकी पढ़ाई मुख्यतः मथुरा में हुई। जिला प्रचारक श्री कृष्णचंद्र गांधी के संपर्क में आकर 1944 में वे स्वयंसेवक बने।
1945, 46 और 47 में तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग तथा पढ़ाई पूर्ण कर 1947 में अलीगढ़ के अतरौली से उनका प्रचारक जीवन प्रारम्भ हुआ। क्रमशः वे मथुरा नगर (1952), मथुरा जिला (1953-57), बिजनौर जिला (1957-67), बरेली जिला (1967-69) और फिर बरेली विभाग प्रचारक रहे। उन दिनों उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र बरेली विभाग में ही था। 1948 के प्रतिबंध काल में वे अलीगढ़ जेल में रहे। बिजनौर में पूरे जिले का प्रवास वे साइकिल से ही करते थे। उन्होंने साइकिल के हैंडल पर रखकर किताब पढ़ने का अभ्यास भी कर लिया था। चाय और प्याज-लहसुन का उन्होंने कभी सेवन नहीं किया। वे होम्योपैथी तथा आयुर्वेदिक दवाएं ही प्रयोग करते थे।
आपातकाल के दौरान वे बरेली और मुरादाबाद के विभाग प्रचारक थे। वहीं रामपुर जिले के शाहबाद में पुलिस ने उन्हें तत्कालीन प्रांत प्रचारक माधवराव देवड़े के साथ गिरफ्तार कर लिया। फिर पूरे आपातकाल वे मीसा के अंतर्गत रामपुर जेल में ही रहे। आपातकाल के बाद 1978 में वे पश्चिमी उ.प्र. के प्रांत प्रचारक बनाये गये। 1989 में वे सहक्षेत्र प्रचारक तथा 1994 में क्षेत्र प्रचारक बने। 2004 में उन्हें अखिल भारतीय सहसेवा प्रमुख और 2006 में केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य की जिम्मेदारी मिली।
ओमप्रकाशजी परिश्रम के अवतार थे। सुबह चार बजे के बाद और रात को 11 बजे से पहले वे कभी सोते नहीं थे। दोपहर में भी वे कभी विश्राम नहीं करते थे। वे कहते थे कि प्रचारक की सबसे बड़ी विशेषता उसकी हर समय उपलब्धता है। अपने भारी थैले के साथ वे सदा प्रवास में रहते थे। लोग हंसी में कहते थे, ‘‘रात में यात्रा दिन में काम, ओमप्रकाशजी को नहीं आराम।’’ बिना डायरी के ही सैकड़ों फोन नंबर उन्हें याद रहते थे। प्रचारक हो या गृहस्थ कार्यकर्ता, वे सबकी पूरी चिंता करते थे। उनके साथ रहे कई प्रचारक आज संघ तथा समविचारी संगठनों में राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे हैं।
गोवंश के प्रति उनकी भक्ति अनुपम थी। दिल्ली में उन्हें ‘गोऋषि’ की उपाधि दी गयी थी। वे कहते थे कि दूध के अलावा बाकी चीजें भी जब आर्थिक रूप से लाभकारी होंगी, तभी लोग बूढ़ी गायों को घर पर रखेंगे। उन्होंने गोबर और गोमूत्र से मनुष्य, पशु और खेती के उपयोगी कई उत्पाद बनवाये तथा इनके उद्योग भी लगवाये। दिल्ली में आई.आई.टी के वैज्ञानिकों को भी इसमें लगाया। छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से भी इस दिशा में कई सफल प्रयोग किये।
चुनावों में वे फोन पर 24 घंटे उपलब्ध रहकर राज्य की हर विधानसभा और लोकसभा सीट की चिंता करते थे। इसी से आज उ.प्र. भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन सका है। राममंदिर आंदोलन में सभी योजनाओं की पृष्ठभूमि में रहकर हर तनाव और दबाव को उन्होेंने झेला। लखनऊ में विश्व संवाद केन्द्र और माधव सेवाश्रम तथा मथुरा में दीनदयालजी के पैतृक गांव नगला चंद्रभान में हुए निर्माण में उनकी भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।
भावुक प्रवृत्ति के ओमप्रकाशजी निराशा और हताशा से सदा दूर रहे। उन्होंने उ.प्र. में पूर्व सैनिक सेवा परिषद, अधिवक्ता परिषद, शैक्षिक महासंघ, विश्व आयुर्वेद परिषद, आरोग्य भारती, प्रकृति भारती आदि कई संगठन बनाये, जो अब अखिल भारतीय बन चुके हैं। 2003 में लखनऊ कार्यालय में सीढि़यों से गिरकर उनके सिर में गंभीर चोट आ गयी; पर ठीक होकर वे फिर काम में लग गये। फेफड़े एवं हृदय में संक्रमण के कारण चार अगस्त, 2019 को लखनऊ में ही उनका निधन हुआ। उनकी इच्छानुसार उनकी देह छात्रों के अनुसंधान के लिए लखनऊ के मैडिकल काॅलिज को दे दी गयी।
(संदर्भ : व्यक्तिगत वार्ता एवं वि.सं.केन्द्र, लखनऊ)
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