Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog पुण्यतिथि पंडित गेंदालाल : जिन्हें अपनों ने ही ठुकराया “21 सितम्बर/पुण्य-तिथि”
पुण्यतिथि हर दिन पावन

पंडित गेंदालाल : जिन्हें अपनों ने ही ठुकराया “21 सितम्बर/पुण्य-तिथि”


पंडित गेंदालाल : जिन्हें अपनों ने ही ठुकराया “21 सितम्बर/पुण्य-तिथि”

प्रायः ऐसा कहा जाता है कि मुसीबत में अपनी छाया भी साथ छोड़ देती है। क्रांतिकारियों के साथ तो यह पूरी तरह सत्य था। जब कभी वे संकट में पड़े, तो उन्हें आश्रय देने के लिए सगे-संबंधी ही तैयार नहीं हुए। क्रांतिवीर पंडित गेंदालाल दीक्षित के प्रसंग से यह भली-भांति समझा जा सकता है।

पंडित गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवम्बर, 1888 को उत्तर प्रदेश में आगरा जिले की बाह तहसील के ग्राम मई में हुआ था। आगरा से हाईस्कूल कर वे डी.ए.वी. पाठशाला, औरैया में अध्यापक हो गये। बंग-भंग के दिनों में उन्होंने ‘शिवाजी समिति’ बनाकर नवयुवकों में देशप्रेम जाग्रत किया; पर इस दौरान उन्हें शिक्षित, सम्पन्न और तथाकथित उच्च समुदाय से सहयोग नहीं मिला। अतः उन्होंने कुछ डाकुओं से सम्पर्क कर उनके मन में देशप्रेम की भावना जगाई और उनके माध्यम से कुछ धन एकत्र किया।

इसके बाद गेंदालाल जी अध्ययन के बहाने मुंबई चले गये। वहां से लौटकर ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद के साथ उन्होंने ‘मातृदेवी’ नामक संगठन बनाया और युवकों को शस्त्र चलाना सिखाने लगे। इस दल ने आगे चलकर जो काम किया, वह ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। उस दिन 80 क्रांतिकारियों का दल डाका डालने के लिए गया। दुर्भाग्य से उनके साथ एक मुखबिर भी था। उसने शासन को इनके जंगल में ठहरने की जानकारी पहले ही दे रखी थी। अतः 500 पुलिस वालों ने उस क्षेत्र को घेर रखा था।

जब ये लोग वहां रुके, तो सबको बहुत भूख लगी थी। वह मुखबिर कहीं से पूड़ियां ले आया; पर उनमें जहर मिला था। खाते ही कई लोग धराशायी हो गये। मौका पाकर वह मुखबिर भागने लगा। यह देखकर ब्रह्मचारी जी ने उस पर गोली चला दी। गोली की आवाज सुनते ही पुलिस वाले भी आ गये और फिर सीधा संघर्ष शुरू हो गया, जिसमें दल के 35 व्यक्ति मारे गये। शेष लोग पकड़े गये। एक अन्य सरकारी गवाह सोमदेव ने पंडित गेंदालाल दीक्षित को इस योजना का मुखिया बताया। अतः उन्हें मैनपुरी लाया गया। तब तक उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ चुका था। इसके बाद भी वे एक रात मौका पाकर एक अन्य सरकारी गवाह रामनारायण के साथ फरार हो गये।

पंडित जी अपने एक संबंधी के पास कोटा पहुंचे; पर वहां भी उनकी तलाश जारी थी। इसके बाद वे किसी तरह अपने घर पहुंचे; पर वहां घर वालों ने साफ कह दिया कि या तो आप यहां से चले जाएं, अन्यथा हम पुलिस को बुलाते हैं। अतः उन्हें वहां से भी भागना पड़ा। तब तक वे इतने कमजोर हो चुके थे कि दस कदम चलने मात्र से मूर्छित हो जाते थे। किसी तरह वे दिल्ली आकर पेट भरने के लिए एक प्याऊ पर पानी पिलाने की नौकरी करने लगे।

कुछ समय बाद उन्होंने अपने एक संबंधी को पत्र लिखा, जो उनकी पत्नी को लेकर दिल्ली आ गये। तब तक उनकी दशा और बिगड़ चुकी थी। पत्नी यह देखकर रोने लगी। वह बोली कि मेरा अब इस संसार में कौन है ? पंडित जी ने कहा – आज देश की लाखों विधवाओं, अनाथों, किसानों और दासता की बेड़ी में जकड़ी भारत माता का कौन है ? जो इन सबका मालिक है, वह तुम्हारी भी रक्षा करेगा।

उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। वहीं पर मातृभूमि को स्मरण करते हुए उन नरवीर ने 21 सितम्बर 1920 को प्राण त्याग दिये।

Exit mobile version