राजस्थान में परावर्तन यज्ञ “11 सितम्बर/इतिहास-स्मृति”
भारत और उसके निकटवर्ती देशों के मुसलमान या ईसाई उन हिन्दुओं की संतानें हैं, जिन्होंने कभी भय, भूल, लालच या कुछ हिन्दुओं की कूपमंडूकता के कारण धर्म बदल लिया। इन्हें वापस लाने के प्रयासों में विद्यारण्य स्वामी, देवल ऋषि, गुरू नानक, गुरू गोविन्द सिंह, जगद्गुरू रामानंदाचार्य, समर्थ गुरू रामदास, छत्रपति शिवाजी, स्वामी श्रद्धानंद आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
एक बार संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी के उदयपुर प्रवास में पाली के जिला संघचालक श्री गोकुलदास जी ने उन्हें बताया कि पाली और अजमेर जिले के गांवों में चीता मेहरात जाति के लाखों लोग रहते हैं, जो पृथ्वीराज चौहान के वशंज हैं। नाम से मुस्लिम होने पर भी उनके रीति-रिवाज हिन्दुओं जैसे ही हैं। 1947 में उनमें से सैकड़ों लोगों ने जोधपुर के तत्कालीन महाराज श्री हनुमत सिंह जी की उपस्थिति में एक विशाल यज्ञ कर पुनः हिन्दू धर्म ग्रहण कर लिया था; पर उसके बाद यह काम आगे नहीं बढ़ पाया।
श्री गुरुजी ने कहा कि इन्हें वापस लाने का प्रयास ‘विश्व हिन्दू परिषद’ द्वारा होना चाहिए। वहां संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मोहन जोशी भी उपस्थित थे। उनके मन में जिज्ञासा जगी और वे इस बारे में अध्ययन करने लगे। 1977 में वे विश्व हिन्दू परिषद, राजस्थान के संगठन मंत्री बने। उनके मन में बीजरूप में यह विषय विद्यमान ही था। अतः वे इस दिशा में सक्रिय हो गये।
पृथ्वीराज चौहान के प्रति उनमें अत्यधिक श्रद्धा भाव देखकर यह विचार हुआ कि पृथ्वीराज जयन्ती के माध्यम से ही उनके बीच में कार्य प्रारम्भ किया जाये। अजमेर, पाली, भीलवाड़ा, राजसमन्द आदि जिलों के लगभग 500 गांवों में संघ तथा विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने सम्पर्क प्रारम्भ कर दिया। प्रारम्भ में कुछ कठिनाई आयी; पर उसके बाद आशातीत सफलता मिलने लगी।
वातावरण बनने पर जोधपुर की राजमाता एवं सांसद श्रीमती कृष्णा कुमारी, विहिप के अध्यक्ष महाराणा भगवंत सिंह, ग्वालियर की राजमाता श्रीमंत विजराराजे सिंधिया, पन्ना (म.प्र.) के महाराज श्री नरेन्द्र सिंह जूदेव, जोधपुर के महाराज गजसिंह, भानुपुरा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी, गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ, रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा (राजस्थान) के जगद्गुरू श्री रामकिशोर जी महाराज, जगद्गुरू आश्रम कनखल (हरिद्वार) के महामंडलेश्वर प्रकाशानंद जी महाराज आदि इन कार्यक्रमों में आने लगे।
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज तथा मध्वाचार्य जगद्गुरू विश्वेशतीर्थ जी महाराज ने भी अजमेर आकर इस कार्य को आशीर्वाद दिया। संघ के केन्द्रीय अधिकारी श्री मोरोपंत पिंगले, क्षेत्र प्रचारक श्री ब्रह्मदेव जी तथा राजस्थान प्रांत प्रचारक श्री सोहनसिंह जी ने भी इसमें बहुत रुचि ली।
बाबा रामदेव जयन्ती (11 सितम्बर, 1981) को अजमेर के पास खरेकड़ी गांव में पहला विशाल परावर्तन समारोह आयोजित हुआ। सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल उमराव सिंह की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में 1,500 मुसलमान स्त्री, पुरुष, बच्चों और बूढों ने अपने पूर्वजों के पवित्र हिन्दू धर्म में वापसी की। तत्कालीन पत्रों ने इसके विस्तृत समाचार एवं श्री मोहन जोशी के साक्षात्कार प्रकाशित किये। मोहन जी ने स्पष्ट किया कि ये लोग पहले हिन्दू ही थे, इसलिए इनका फिर से हिन्दू बनना धर्मान्तरण नहीं, परावर्तन और घर वापसी है।
इसके बाद तो प्रति सप्ताह ऐसे कार्यक्रम होने लगे। इनसे जहां हिन्दुओं में उत्साह का संचार हुआ, तो दूसरी ओर कट्टरपंथी मुसलमानों में हड़कम्प मच गया। राजस्थान के इस अनुभव से लाभ उठाकर आजकल पूरे देश में ऐसे परावर्तन समारोह हो रहे हैं।