सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-18
निडर मणिपुरी सेनापति जिन्होंने सन् 1891 में अंग्रेजों के विरुद्ध घमासान युद्ध लड़ा…
सन् 1891 में खोंगजॉम के युद्ध में जब पावना बृजवासी के 299 मणिपुरी साथी सैनिक युद्ध शहीद हो गए, तो वे अकेले ही तब तक लड़ते रहे जब तक पकड़े नहीं गए। मणिपुरी सैनिकों के पास परंपरागत हथियार ही थे जबकि अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार थे। पावना ब्रजवासी युद्ध नीति में इतने निपुण थे कि अंग्रेज सेनापति भी उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाया।
कहा जाता है कि अंग्रेज सेनापति ने पावना बृजवासी को अपनी सेना में शामिल होने पर ऊँचे पद और रैंक का लालच दिया, परंतु ब्रजवासी ने यह कहते हुए स्पष्ट मना कर दिया कि देश से गद्दारी करने से अच्छा मृत्यु को गले लगाना है। साथ ही उन्होंने सिर पर शिरस्त्राण की तरह बाँधी हुई अपनी पगड़ी उतार दी और अपना सिर आगे कर दिया। बृजवासी ने कहा कि यदि तुम चाहो तो मेरा सिर उड़ा सकते हो पर मैं अपने देश के साथ गद्दारी कभी नहीं करूँगा।
ऐसे थे हमारे देश के वीर सपूत जिन्होंने अपने देश के साथ गद्दारी करने से अच्छा मौत को गले लगाना उचित समझा और अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे..।
ऐसे ही वीरों की गाथाएँ सुन सुनकर हमारा सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। हमारी आने वाली पीढ़ियां इन्हीं से प्रेरणा लेती रहेंगी।