Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog श्रुतम् पावना बृजवासी 5
श्रुतम्

पावना बृजवासी 5

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-18

निडर मणिपुरी सेनापति जिन्होंने सन् 1891 में अंग्रेजों के विरुद्ध घमासान युद्ध लड़ा…

वायसराय लैंसडाउन ने असम के चीफ कमिश्नर जे डब्ल्यू क्विंटन और कर्नल स्कीन (J.W. Kwinton, Chief Commissioner of Assam & Col. Skeen) को चार सौ सिपाहियों के साथ सेनापति तिकेंद्रजीत को गिरफ्तार करने के लिए भेजा। ये सेना 22 मार्च 1891 को इंफाल पहुँची।
अगले दिन 23 मार्च को उन्होंने कांग्ला राजमहल पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में कई निर्दोष नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए। मणिपुरी सैनिकों ने प्रतिरोध किया और पाँच ब्रिटिश अफसरों को मार गिराया। मरने वालों में असम का चीफ कमिश्नर जे डब्ल्यू क्विंटन भी था। अंग्रेजों के बहुत सारे सैनिक भी मारे गए।

31 मार्च 1891 को अंग्रेजों ने मणिपुर के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। तीन अलग अलग दिशाओं से उन्होंने तीन अलग-अलग सेनाएँ मणिपुर के विरुद्ध रवाना कर दीं:–
उत्तर दिशा से जाने वाली सेना का नेतृत्व मेजर जनरल एच. क्वालेट कर रहे थे,
पश्चिम दिशा की सेना का नेतृत्व आर. एच. एफ. रेनिक और
दक्षिण दिशा की ओर से आने वाली सेना का नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल टी. ग्राहम कर रहे थे।

पश्चिमी मोर्चे वाली सेना ने मणिपुरी सेना के प्रतिरोध के उपरांत भी 27अप्रैल 1891 को कांग्ला में घुसने में सफलता पाई। उत्तर दिशा से भी ऐसा ही हुआ।
परंतु दक्षिण दिशा से आने वाली ब्रिगेडियर जनरल टी. ग्राहम की सेना को मणिपुरी सेना ने रोक दिया, और यहीं खोंगजॉम का युद्ध लड़ा गया। इस मोर्चे पर लड़ने वाली मणिपुर सेना की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे पावना बृजवासी!

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