सबके राम-4 “इहलोक के राम”
राम अदृश्य नहीं थे। राम मिथक नहीं थे। राम ने इसी धरती पर जन्म लिया। राम ने मनुष्य का जीवन जीते हुए ईश्वरत्व को प्राप्त किया। राम का जीवन बिल्कुल मानवीय ढंग से बीता। उनके व्यक्तित्व में दूसरे देवताओं की भाँति किसी चमत्कार की गुंजाइश नहीं है। सामान्य जन की मुश्किल उनकी मुश्किल है। वे लूट, डकैती, अपहरण और भाइयों से सत्ता की बेदखली जैसी उन समस्याओं का शिकार होते हैं, जिन समस्याओं से आज का सामान्य व्यक्ति जूझ रहा है।
कृष्ण और शिव हर क्षण चमत्कार करते हैं, लेकिन रामकथा में चमत्कार नहीं, अपितु लौकिकता है। राम की धर्मपत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए उन्होंने अपनी योजना बनाई। नर, वानर सेना का गठन किया। लंका जाना हुआ तो उनकी यही सेना एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाती है। वे कुशल प्रबंधक हैं। उनमें संगठन की अद्भुत क्षमता है। जब दोनों भाई अयोध्या से वन को चले तो मात्र तीन लोग थे। जब लौटे तो एक साम्राज्य का निर्माण कर पूरी सेना के साथ लौटे।
राम नियम-कानून से बँधे हैं। उससे बाहर नहीं जाते। एक धोबी ने जब अपहृत सीता पर टिप्पणी की तो वे बेबस हो गए। भले ही उस धोबी के आरोप बेदम थे। पर वे इस आरोप का निवारण उसी नियम से करते हैं, जो आमजन पर लागू होता है। वे चाहते तो नियम बदल सकते थे। संविधान संशोधन कर सकते थे, पर उन्होंने नियम-कानून का पालन किया और सीता का भी परित्याग किया। उसके अतिरिक्त उनके पास क्या मार्ग था?