सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 16
मिजोरम की 84 वर्षीय मुखिया जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध झुकने से स्पष्ट मना किया…
सन् 1885 में जिन मिजो सरदारों ने अंग्रेजों के चाय बागानों पर छापे मारकर उन्हें हानि पहुँचाई थी, उनमें वांडूला के सरदार रोईपुल्लानी के पति भी थे। उन्होंने वहाँ काम करने वाले कई अंग्रेज और हिंदुस्थानी कामगारों को बंदी बना लिया था, जिन्हें बाद में क्षमादान देकर छोड़ दिया गया था।
अंग्रेजों ने चालाकी दिखाते हुए इन छोड़े गए हिंदुस्थानी लोगों को ही कर व खेतिहर उपज एकत्रित करने के काम में लगा रखा था।
अंग्रेजों ने अपने एक कामगार को रोईपुल्लानी के दरबार में कर और कुलियों लाने के लिए भेजा। साथ ही उन्होंने काफी खेतिहर उपज की भी माँग की, परन्तु रोईपुल्लानी ने यह सब देने से स्पष्ट मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि- ‘हमारे द्वारा क्षमादान पर छोड़ा गया बंदी हमसे किसी तरह की माँग करने के योग्य नहीं है। इसका चेहरा देखने मात्र से मुझे क्रोध आता है और मैं इसका चेहरा ही नहीं देखना चाहती। मैं चाहती हूँ इसे कोई मार डाले…।’