सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 16
मिजोरम की 84 वर्षीय मुखिया जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध झुकने से स्पष्ट मना किया…
जब दूसरी वार अंग्रेजों ने अपने कर संग्रहण की माँग के साथ पुनः अपना कर संग्रहकर्ता दूत रोईपुल्लानी के दरबार में भेजा तो उन्होंने उसकी हत्या कर दी।
इसके साथ ही रोईपुल्लानी ने घोषणा की कि-
“मैं और मेरी जनता ने कभी किसी को कर नहीं दिया है और न देंगे, न ही हम लोगों ने कभी बेगार की है और न करेंगे। हम अपनी जमीन के खुद मालिक हैं और इससे होने वाली उपज भी हमारी है। कोई भी विदेशी जो इस पर कब्जा करने की कोशिश करेगा हम उसे यहाँ से खदेड़ देंगे।”
रोईपुल्लानी अपनी इस घोषणा पर अपनी अंतिम सांस तक दृढ़ता से कायम रहीं।
मगर क्या ब्रिटिश इस खुले विद्रोह को सहन करते? उन्होंने मिजो लोगों को अपनी शक्ति दिखाने के लिए कैप्टन शेक्सपियर को फौज के साथ वहाँ भेज दिया। कैप्टन शेक्सपियर ने माट नदी के किनारे रालवांग गाँव की सीमा के पास अपना शिविर लगाया।
यहाँ से अपना दूत भेज कैप्टन ने माँग की, कि रोईपुल्लानी स्वयं अपने पुत्र ललथुआमा के साथ 100 बोरी चावल, 20 मुर्गे, 10 सूअर, 10 बकरी, एक बैल और 30 बंदूकें लेकर उसके शिविर तक चल कर आ जाए।