मध्य प्रदेश में विद्या भारती के पर्याय रोशनलालजी “5 अक्तूबर/जन्म-दिवस”
विद्या भारती शिक्षा क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। इसका प्रारंभ 1952 में उ.प्र. के गोरखपुर नगर से हुआ था। सरस्वती शिशु मंदिर का प्रयोग सफल होने पर देश भर में इन विद्यालयों की मांग होने लगी। म.प्र. में इस संस्था के काम को विस्तार देने वाले श्री रोशनलाल सक्सेना का जन्म म.प्र. के ही सीधी नगर में पांच अक्तूबर, 1931 को हुआ था।
1943 में वे संघ के स्वयंसेवक बने और गटनायक, गणशिक्षक, मुख्यशिक्षक से लेकर रीवा नगर कार्यवाह तक की जिम्मेदारी संभाली। 1962, 63 तथा 1966 में उन्होंने क्रमशः तीनों संघ शिक्षा वर्ग पूर्ण किये। उन्होंने एम.एस-सी. (गणित) में संपूर्ण विश्व विद्यालय में प्रथम श्रेणी में भी प्रथम स्थान पाया था। अतः उन्हें तुरंत ही महाविद्यालय में अध्यापन कार्य मिल गया।
पर उनके जीवन का उद्देश्य केवल नौकरी करना या परिवार बसाना नहीं था। अतः 1964 में उन्होंने शासकीय नौकरी छोड़ दी। रीवा के विभाग प्रचारक सुदर्शनजी को उस वर्ष प्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी मिली थी। उनके स्थान पर रोशनलालजी को विभाग प्रचारक बनाया गया। रोशनलालजी एक मेधावी छात्र तथा योग्य अध्यापक रहे थे। उनकी इच्छा थी कि उ.प्र. की तरह म.प्र. में भी सरस्वती शिशु मंदिरों की स्थापना हो। उनके प्रयास से 12 फरवरी, 1959 (वसंत पंचमी) को रीवा की एक धर्मशाला में पहला सरस्वती शिशु मंदिर खुला। रोशनलालजी उसकी प्रबंध समिति के सचिव बनाये गये। उसकी सफलता से म.प्र. में शिशु मंदिरों का विस्तार होने लगा।
धीरे-धीरे विन्ध्य क्षेत्र में 12 विद्यालय प्रारम्भ हो गये। 1974 में इन्हें व्यवस्थित करने के लिए रोशनलालजी को सचिव बनाकर प्रांतीय समिति बनायी गयी। इस प्रकार वे शिशु मंदिर योजना के लिए ही समर्पित हो गये। बस्तर का क्षेत्र नक्सलवादियों का गढ़ है; पर वहां भी विद्यालय प्रारम्भ हुए। आपातकाल में दमोह पुलिस ने उन्हें पकड़ कर मीसा में बंद कर दिया। 16 जुलाई, 1975 से 20 जनवरी, 1977 तक वे भोपाल केन्द्रीय कारागार में रहे। आपातकाल के बाद विद्यालयों के काम को अखिल भारतीय स्वरूप दिया गया। रोशनलालजी राष्ट्रीय सचिव तथा म.प्र. विद्या भारती के संगठन मंत्री बनाये गये।
रोशनलालजी की इच्छा एक संस्कारप्रद बाल पत्रिका निकालने की थी। उनके सम्पादन में 14 नवम्बर, 1978 (बाल दिवस) पर इंदौर से मासिक पत्रिका ‘देवपुत्र’ प्रारम्भ हुई। 1984 में मा. रज्जू भैया तथा भाऊराव देवरस ने भोपाल के आसपास एक आवासीय विद्यालय बनाने को कहा। जो जगह मिली, वह बहुत बड़ी थी। संस्था पर पैसे भी नहीं थे। ऐसे में म.प्र. के सभी विद्यालयों से उधार लेकर जगह ले ली गयी। राज्य के भा.ज.पा. विधायकों ने भी सहयोग दिया। 1985 से वहां शारदा विहार आवासीय विद्यालय चल रहा है।
विद्या भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री लज्जारामजी की इच्छा एक योग एवं अध्यात्म केन्द्रित विद्यालय बनाने की थी। अतः अमरकंटक में वनवासी आवासीय विद्यालय शुरू किया गया। सरसंघचालक बालासाहब देवरस का पैतृक गांव म.प्र. में बालाघाट है। वहां भी एक सेवा न्यास तथा आवासीय विद्यालय चल रहा है। ग्रामीण तथा वनवासी विद्यालयों पर उनका विशेष जोर रहता था। वे छात्रों के साथ ही आचार्य, उनके परिवार, प्रबंध समिति के सदस्य तथा भवन निर्माण में लगे मजदूरों तक की पूरी चिंता करते थे। उनके स्वभाव में जुझारूपन के साथ ही प्रेम का सागर भी बहता था। म.प्र. में विद्या भारती की हर बड़ी योजना की नींव में वही थे।
विद्या भारती में उन पर वनवासी शिक्षा प्रमुख से लेकर राष्ट्रीय मार्गदर्शक तक की जिम्मेदारी रही। नवम्बर 2011 में सरसंघचालकजी ने इंदौर में उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया। म.प्र. में विद्या भारती के पर्याय रोशनलालजी ने 21 अगस्त, 2018 को सुदीर्घ आयु में भोपाल में अंतिम सांस ली।