सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-26
जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना खड़ी की…
अंग्रेजों ने दीमासा क्षेत्र में कर तथा लगान के नए नियम और कानून लागू कर दिए। उन्होंने दीमासा जनजाति लोगों के हाथ में कोई राजनीतिक अथवा आर्थिक शक्ति नहीं छोड़ी।
आम जनता को नए नियम मानने और भारी करों को चुकाने में बहुत परेशानी हो रही थी। अधिकतर दीमासा कछारी लोग अपनी जमीन अंग्रेजों के हाथों खो चुके थे। अंग्रेज उनसे बेगार कराते थे और कठिन मजदूरी करने पर भी बहुत कम पगार देते थे।
उस समय के एक अभिलेख के अनुसार- कैप्टन फ्रांसिस जेनकिंस और आर बी पेंबर्टन (Capt. Francis Jenkings & RB Pemberton) ने एक अभियान के दौरान केवल 83 अंग्रेजों की सेवा के लिए 1,400 जनजातीय कछारी लोगों को बेगार पर रखा था। यह शोषण की भारी पराकाष्ठा थी..।
19वीं शताब्दी में एक दीमासा कछारी लोकगीत बहुत लोकप्रिय हुआ था जिसके बोल के अर्थ कुछ ऐसे थे:–
“हाय, हमारे गाँव पर यह क्या दुर्भाग्य आ पड़ा…
चूजे बाज़ों को बंदी बना रहे हैं….
गोरे हमारे खेतों और नदियों पर कब्जा कर रहे हैं..
क्या हमारी सोने जैसी भूमि में कोई पैदा नहीं हुआ जो हमें इनसे मुक्ति दिला सके?
क्या हमारे महान योद्धा देमालू, हालोदाऊ, रंगादाऊ, देगादाऊ और देलाई मायलाइ पुनर्जन्म नहीं लेंगे?”
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