सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-26
जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना खड़ी की…
संबूधन फोंगलो अब अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई को और व्यापक स्तर पर फैलाना चाहते थे। परंतु इसके लिए उन्हें और अधिक व्यक्ति तथा अस्त्र-शस्त्र चाहिए थे। अत: उन्होंने त्रिपुरा के राजा से मिलकर एक संयुक्त सेना बनाने की सोची।
उन्होंने अपने मुख्य सहायक मान सिंहा को त्रिपुरा भेजा। अंग्रेजों को किसी तरह से इसका पता चल गया और उन्होंने मान सिंहा को गिरफ्तार कर लिया।
उन्हें सिलचर लाकर सिलचर जेल में आजीवन कारावास की सजा दी गई। वीर मान सिंहा ने अंग्रेजी हुकूमत से किसी भी तरह का खाना-पानी लेने से इंकार कर दिया, और कई दिनों के अनशन के बाद उन्होेंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
संबूधन फोंगलो अपने दृढ़ निश्चय और साहस के बल पर और लोगों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए निरंतर प्रेरित करते रहे। साथ ही अवसर मिलने पर स्थान-स्थान पर अंग्रेजों पर आक्रमण करके उन्हें मौत के घाट उतारते रहे तथा अंग्रेज संपत्ति को हानि भी पहुँचाते रहे।
एक घाव के कारण 12 फरवरी, 1883 को संबूधन फोंगलो की मृत्यु हो गई। उनके पश्चात् समुचित नेतृत्व के अभाव में दीमासा कछारी विद्रोह भी धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
वीर पराक्रमी संगठक संबूधन फोंगलो तथा दीमासा कछारी के साहसी योद्धाओं को हमारा कोटि कोटि नमन्।
वंदे मातरम्।