सरदार अजीत सिंह “23 फरवरी/ जन्मदिन”
स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को जन्म भारत में पंजाब के खटकड़ कलां गांव के सैन्य परिवार में हुआ था. उनके दादाजी सरदार फतेह सिंह सिंहू थे और उनके बड़े भाई सरदार किशन सिंह थे जो सरदार भगत सिंह के पिता थे. अजीत सिंह पंजाब के पहले आंदोलनकारियों में से एक थे जिन्होंने खुले तौर पर ब्रिटिश शासकों के सामने अपनी घोर नाराजगी जताते हुए सरकार की सार्वजनिक रूप से आलोचना की.
सरदार अजीत सिंह ने जालंधर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की थी।
सरदार अजीत सिंह को राजनीतिक विद्रोही घोषित कर दिया गया था। उनका अधिक्तर जीवन जेल में ही बीता। 1996 लाला लाजपत राय जी के साथ ही उन्हें देश से निकालने का दंड भी दिया गया था। सरदार अजीत सिंह ने 1907 के भू -संबंधी आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें गिरफ्तार कर कर बर्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया
सरदार अजीत सिंह ने कुछ पत्रिकाएँ निकाली और भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर कई पुस्तके लिखी। सरदार सिंह को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। उन दिनों सरदार अजीत सिंह ने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
क्रांतिकारी हलचल
अजीत सिंह के बारे में श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि वे स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बनने के योग्य है। जब तिलक ने यह कहा था तब अजीत सिंह की उम्र केवल 25 वर्ष ही थी। 1909 में सरदार अजीत सिंह अपना घर बार छोड़कर देश की सेवा के लिए विदेश यात्रा के लिए निकल चुके थे। उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विटजरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया। सरदार अजीत अजीत सिंह परसिया, रोम और दक्षिण अफ्रीका में रहे और 1947 में भारत वापिस लौटे। भारत लौटने पर उनकी पत्नी ने पहचान के कई सवाल पूछे जिन का सही जवाब मिलने के बाद उनके पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि अजीत सिंह इतनी भाषाओं को बोलना सीख चुके थे कि उन्हें पहचानना भी मुश्किल हो चुका था।
15 अगस्त 1947 को सरदार अजीत सिंह जय हिंद कहकर दुनिया से अलविदा कह गए।
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