Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog जन्म दिवस हिन्दी में विज्ञान लेखक प्रो. महेश चरण सिन्हा “6 नवम्बर/जन्म-दिवस”
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हिन्दी में विज्ञान लेखक प्रो. महेश चरण सिन्हा “6 नवम्बर/जन्म-दिवस”


हिन्दी में विज्ञान लेखक प्रो. महेश चरण सिन्हा “6 नवम्बर/जन्म-दिवस”

हिन्दी में सर्वप्रथम विज्ञान संबंधी लेख एवं पुस्तकें लिखने वाले प्रो. महेश चरण सिन्हा का जन्म छह नवम्बर, 1882 को लखनऊ (उ.प्र.) में हुआ था। लखनऊ के बाद उन्होंने प्रयाग से बी.ए. और कानून की शिक्षा पाई।

एक बार जापान के सिन्धी सेठ आसूमल द्वारा जापान में तकनीकी शिक्षा पाने वाले भारतीय छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति का समाचार छपा। लखनऊ के नगराध्यक्ष बाबू गंगाप्रसाद वर्मा एडवोकेट का पत्र तथा कुछ धन लेकर महेश जी बर्मा, मलाया, चीन आदि घूमते हुए जापान जा पहुंचे; पर वहां पहुंचने पर उस सेठ ने पढ़ाई की पूरी राशि देने से मना कर दिया।

तब तक महेश जी की जेब खाली हो चुकी थी। अतः कई दुकानों तथा उद्योगों में काम करते हुए उन्होंने टोकियो वि.वि. से टेक्नो केमिस्ट की डिग्री ली। अब आगे पढ़ने के लिए वे अमरीका जाना चाहते थे। उनसे प्रभावित होकर जापान के एक मंत्री ने अपने राजदूत को पत्र लिखा कि जब तक इनके आवास का उचित प्रबन्ध न हो, तब तक इन्हें राजदूतावास में रहने दिया जाए।

महेश जी जिस जहाज से अमरीका गये, उसका कप्तान सभी धर्मों के बारे में इनकी जानकारी से बहुत प्रभावित था। उसने वहां इनके कई व्याख्यान कराये। इससे इन्हें धन तथा प्रतिष्ठा दोनों ही प्राप्त हुईं। एम.एस-सी. करते समय उन्होंने कुछ व्यापारियों द्वारा कॉफी पाउडर में की जा रही मिलावट का सप्रमाण भंडाफोड़ किया। इससे ये प्रसिद्ध हो गये और बड़े-बड़े पत्रों में इनके लेख छपने लगे। इन्होंने भारत के हिन्दी व उर्दू पत्रों में भी कई लेख लिखे।

महेश जी की खूब पढ़ने तथा घूमने की इच्छा थी; पर इसके लिए पैसा चाहिए था। अतः बर्तन साफ करने से लेकर बाग में फल तोड़ने जैसे काम इन्होंने किये। अमरीका से ये इंग्लैंड चले गये। वहां स्वतंत्रता संबंधी इनके विचार पढ़ और सुनकर इनके पीछे जासूस लग गयेे। अतः फ्रांस, जर्मनी, इटली, मिस्र आदि की शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन करते हुए ये मुंबई आ गये। उन्होंने हर जगह वहां रह रहे भारतीयों से स्वाधीनता के लिए सक्रिय होने को कहा।

भारत आकर वे लोकमान्य तिलक और गरम दल वालों के साथ कांग्रेस में काम करने लगे। उच्च शिक्षा के कारण इन्हें कई अच्छी नौकरियों के प्रस्ताव मिले; पर इन्होंने अंग्रेजों की नौकरी स्वीकार नहीं की। वे चाहते थे कि भारत में भी विदेशों जैसे अच्छे विद्यालय और स्वदेशी उद्योग हों, जिनमें युवक अपनी भाषा में तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

इसके लिए इन्होंने अनेक उद्योगपतियों से संपर्क किया; पर निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद वे गुरुकुल कांगड़ी में पढ़ाने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने अयोध्या में अपना एक उद्योग लगाया; पर वहां प्लेग फैलने से इनकी दो पुत्रियों की मृत्यु हो गयी। कर्मचारी भी भाग खड़े हुए और उद्योग बन्द हो गया।

अब लखनऊ आकर महेश जी ने हिन्दी में विज्ञान संबंधी पुस्तकें लिखनी प्रारम्भ कीं। उनकी सफलता से हिन्दी में विज्ञान लेखन की धारा चल पड़ी। इसके साथ ही उन्होंने अनेक सफल वैज्ञानिकों, उद्योगपतियों तथा देशभक्तों की जीवनियां भी लिखीं। वे नौ वर्ष तक लगातार नगर पार्षद भी रहे।

महेश जी ने हिन्दी, अंग्रेजी तथा उर्दू के कई पत्रों का सम्पादन किया। वे लाला हरदयाल, वीर सावरकर, भाई परमानंद जैसे स्वाधीनता सेनानियों के पत्रों में नियमित लिखते थे। लखनऊ की अनेक सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय रहते हुए 23 जून, 1940 को उनका देहांत हुआ।

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