Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog श्रुतम् आत्मनिर्भर भारत तथा हमारी अवधारणा-15
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आत्मनिर्भर भारत तथा हमारी अवधारणा-15

आत्मनिर्भर भारत तथा हमारी अवधारणा-15

हमारे उद्योगों की कहानी भी कम रोचक नहीं है। सन् 1960 में हम सुई भी बाजार से लाते थे, तो वह भी सिंगापुर या किसी अन्य देश की होती थी।
हमारे देश में दो हजार वर्ष पुराने लौहस्तंभ अनेक स्थानों पर हैं। महरौली में कुतुबमीनार परिसर के लौहस्तंभ (विष्णु स्तम्भ) की चर्चा ज्यादा होती है, जिसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया था। यह दो हजार वर्ष पुराना स्तंभ है।
भारत कभी लोहे का निर्यातक देश था। शनै-शनै लोहा उद्योग भारत में समाप्त हो गया। आज से सौ-सवा सौ वर्ष पहले के लोहे के पुल भारत में हैं, वे विदेश से आए लोहे से बने हैं। ब्रिटिशर्स की नीति और नई तकनीकी के अभाव में भारत का लोहा उद्योग समाप्त हो गया था।

31 मई, 1893 को स्वामी विवेकानंद जी अपनी विदेशी समुद्र यात्रा पर थे। उस समय जमशेद जी टाटा उनके साथ थे। दोनों के बीच कई दिन लंबी वार्ता हुई। बाद में इसका जिक्र करते हुए जमशेद जी टाटा ने बताया था कि “स्वामी जी ने मुझसे आग्रह किया कि मैं भारत में लोहे का उद्योग लगाऊँ। साथ ही देश की वैज्ञानिक क्षमताओं को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक अनुसंधान और उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना करूँ। स्वामी जी ने बताया कि उद्योग में नई तकनीकी और अध्यात्म का मेल कैसे कर सकते हैं? मैं स्वामी जी की दोनों बातों का सम्मान करता हूँ और समय आने पर इन्हें क्रियान्वित करूँगा।”
जमशेद जी टाटा ने लोहे की बड़ी फैक्ट्री लगाने का मन बनाया, जिसके लिए वे इंग्लैंड गए। इंग्लैंड के लोगों ने उनको लोहे की तकनीकी देने से मना कर दिया। तब वे अमेरिका गए। अमेरिका से वे निराश नहीं लौटे। उन्हें तकनीक मिल गई थी। भारत लौटकर उन्होंने जमशेदपुर में लोहे की फैक्ट्री लगाने की योजना बनाई। जब वे फैक्ट्री की नींव रख रहे थे, तो यह समाचार इंग्लैंड पहुँच गया। फ्रेडरिक अपकार्ड नामक अंग्रेज अधिकारी भारतीय रेल का सारा काम देखता था। उसने समाचार सुना तो व्यंग्यात्मक उपहास किया कि “भारत का व्यक्ति लोहे की फैक्ट्री कैसे लगा सकता है ! उसको कह देना कि जितना स्टील के रेल का सामान वह बनाएगा, वह सारा लोहा इस्पात मैं खरीद सकता हूँ। बनाए, कितना बनाता है..।”

यद्यपि जमशेद जी टाटा अपने जीवन में अपने द्वारा रखी फैक्ट्री का उत्पाद नहीं देख सके, उनका स्वर्गवास हो गया। सन् 1912 में उत्पादन शुरू हुआ और अंग्रेजों ने लोहा खरीदना शुरू किया, और जब प्रथम विश्व युद्ध के समय दुनिया के अनेक देशों में रेललाइन बिछने वाली थी, तो उसका स्टील टाटा जी के जमशेदपुर कारखाने से ही गया। तब जमशेद जी के बेटे सरदोराब जी टाटा ने कहा कि जो फ्रेडरिक अपकार्ड है, वह नहीं रहा। अगर वह होता तो उसे हमारे कारखाने के स्टील की खपत करने का खतरा हो जाता, इतना उत्पादन हम करते हैं।

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