गुरु गोविंद सिंह जी “जन्मदिवस पौषशुक्ल सप्तमी विक्रमी संवत् 1723” तदनुसार 22 दिसम्बर 1666 इस वर्ष 17 जनवरी 2024.
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह, जिन्होंने खालसा पंथ की नींव रखी
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौषशुक्ल सप्तमी विक्रमी संवत् 1723 तदनुसार 22 दिसम्बर 1666 पटना साहिब में हुआ था. उनका बचपन का नाम गोविंद राय था. पटना में जिस स्थान पर गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ, वह जगह अब पटना साहिब के नाम से जानी जाती है. पिता गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के बाद 11 नवंबर 1675 को वे गुरु बने, तब उनकी उम्र केवल 9 साल थी. उनके पिता की मृत्यु भी सामान्य ढंग से नहीं, बल्कि औरंगजेब के धर्म-परिवर्तन की मुहिम को रोकते हुए हुई.
असल में औरंगजेब तब हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहा था. सताए हुए लोग गुरु तेग बहादुर के पास फरियाद लेकर पहुंचे, तब विरोध करने पर औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया था. इसके तुरंत बाद ही उनके बेटे यानी गुरु गोबिंद सिंह ने जिम्मेदारी ली. इसके बाद से उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु प्रथा को समाप्त किया और गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च बताया जिसके बाद से ही ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा की जाने लगी और गुरु प्रथा खत्म हो गई. ये सिख समाज में काफी बड़ा पड़ाव माना जाता है. साथ ही गोबिंद सिंह जी ने खालसा वाणी – “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह” भी दी. खालसा पंथ की की रक्षा के लिए गुरु गोबिंग सिंह जी मुगलों और उनके सहयोगियों से कई बार लड़े.
गुरु गोबिंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया ले कर आया, जिनमें से एक खालसा पंथ की स्थापना मानी जाती है. खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की. इस दिन उन्होंने पांच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया और फिर उन पांच प्यारों के हाथों से खुद भी अमृतपान किया.
उन्होंने खालसा को पांच सिद्धांत दिए, जिन्हें 5 ककार कहा जाता है. पांच ककार का मतलब ‘क’ शब्द से शुरू होने वाली उन 5 चीजों से है, जिन्हें गुरु गोबिंद सिंह के सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसा सिखों को धारण करना होता है. गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के लिए पांच चीजें अनिवार्य की थीं- ‘केश’, ‘कड़ा’, ‘कृपाण’, ‘कंघा’ और ‘कच्छा’. इनके बिना खालसा वेश पूरा नहीं माना जाता
.केवल 9 साल की उम्र में दुनिया के सबसे ताकतवर समुदायों में से एक की कमान संभालने वाले गुरु गोबिंद सिंह केवल वीर ही नहीं थे, बल्कि वे भाषाओं के जानकार और अच्छे लेखक भी थे. उन्हें संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाओं का ज्ञान था. उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की, जो सिख समुदाय में आज भी चाव से पढ़े जाते हैं.
बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है, हालांकि इसमें आत्मकथा से ज्यादा उस समय और हालातों का जिक्र है, साथ ही साथ मुश्किल से पार पाने के तरीके भी बताए गए हैं. उन्हें विद्वानों की बड़ी समझ थी और कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा पचासों लेखक और कवि रहा करते थे. यही कारण है कि गुरु गोबिंद सिंह को संत सिपाही भी कहा जाता है.
धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पूरे परिवार का एक-एक करके बलिदान कर दिया था. इसके बाद उन्हें सरबंसदानी’ (सर्ववंशदानी) भी कहा जाने लगा. इसके अलावा लोग उन्हें कई नामों से पुकारते थे, जैसे कलगीधर, दशमेश और बाजांवाले. औरंगजेब की मौत के बाद डरे हुए नवाब वजीत खां ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह की हत्या करवा दी. ये 7 अक्टूबर 1708 की बात मानी जाती है. गुरु गोबिंद सिंह के जाने के बाद भी उनकी बातें खालसा पंथ और पांच ककार के तौर पर सिखों के साथ चलती हैं.l
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