Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog जन्म दिवस कुशल संगठक सुन्दर सिंह भण्डारी “12 अप्रैल/जन्म-दिवस”
जन्म दिवस हर दिन पावन

कुशल संगठक सुन्दर सिंह भण्डारी “12 अप्रैल/जन्म-दिवस”


कुशल संगठक सुन्दर सिंह भण्डारी “12 अप्रैल/जन्म-दिवस”

श्री सुन्दर सिंह भंडारी का जन्म 12 अप्रैल, 1921 को उदयपुर (राजस्थान) में प्रसिद्ध चिकित्सक डा. सुजानसिंह के घर में हुआ था। 1937-38 में कानपुर में बी.ए. करते समय वे अपने सहपाठी दीनदयाल उपाध्याय के साथ नवाबगंज शाखा पर जाने लगे। भाऊराव देवरस से भी इनकी घनिष्ठता थी।

1940 में नागपुर से प्रथम वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग करते समय इन्हें डा0 हेडगेवार के दर्शन का सौभाग्य मिला। 1946 में तृतीय वर्ष कर भंडारी जी प्रचारक बन गये। सर्वप्रथम इन्हें जोधपुर विभाग का काम दिया गया। 1948 के प्रतिबंध काल में भूमिगत रहकर इन्होंने सत्याग्रह का संचालन किया।

1951 में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना कर श्री गुरुजी से कुछ कार्यकर्ताओं की मांग की। उनके आग्रह पर दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख के साथ भंडारी जी को भी इसमें भेज दिया गया।

प्रारम्भ में वे राजस्थान में ही जनसंघ के संगठन मन्त्री रहे। उनके प्रयास से 1952 के चुनाव में राजस्थान से जनसंघ के आठ विधायक जीते। बहुत शीघ्र ही जनसंघ का काम गांव-गांव में फैल गया। वे अति साहसी एवं स्थिरमति के व्यक्ति थे। कश्मीर सत्याग्रह के दौरान 23 जून, 1953 को डा0 मुखर्जी की जेल में ही षड्यन्त्रपूर्वक हत्या कर दी गयी; पर भंडारी जी ने उसी दिन स्वयं को एक सत्याग्रही जत्थे के साथ गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत कर दिया।

1954 में जनसंघ के केन्द्रीय मंत्री के नाते उन्होंने राजस्थान, गुजरात, हिमाचल तथा उ.प्र. में सघन कार्य किया। 1967 में दीनदयाल जी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर वे महामंत्री बनाये गये। 1968 में दीनदयाल जी की हत्या के बाद उन्हें जनसंघ का राष्ट्रीय संगठन मन्त्री बनाया गया।

वे संगठन के अनुशासन तथा रीति-नीति का कठोरता से पालन करते थे। निर्णय से पूर्व वे विचार-विमर्श का खुले मन से स्वागत करते थे; पर बाद में बोलने को अक्षम्य मानते थे। कई वर्ष संगठन मन्त्री रहने के बाद वे दल के उपाध्यक्ष बने। आपातकाल के विरुद्ध हुए संघर्ष में वे भूमिगत रहकर काम करते रहे; पर कुछ समय बाद वे पकड़े गये। जेल में उन्होंने अपनी सादगी और वैचारिक स्पष्टता से विरोधियों का मन भी जीत लिया। जेल से ही वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।

1977 में जनता पार्टी में जनसंघ का विलय हुआ; पर यह मित्रता स्थायी नहीं रही। भंडारी जी को इसका अनुमान था। अतः उन्होंने पहले ही ‘युवा मोर्चा’ तथा ‘जनता विद्यार्थी मोर्चा’ का गठन कर लिया था। 1980 में ‘भारतीय जनता पार्टी’ का गठन होने पर नये दल का संविधान उन्हीं की देखरेख में बना।

दो बार उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेजा गया। तीसरी बार उन्होंने यह कहकर मनाकर दिया कि अब किसी अन्य कार्यकर्ता को अवसर मिलना चाहिए; पर मा0 रज्जू भैया एवं शेषाद्रि जी के आग्रह पर वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में जाने को तैयार हुए। केन्द्र में अटल जी के नेतृत्व में बनी सरकार में वे बिहार और गुजरात के राज्यपाल तथा ‘मानवाधिकार आयोग’ के अध्यक्ष रहे।

भंडारी जी ने आजीवन प्रचारक की मर्यादा को निभाया। वैचारिक संभ्रम की स्थिति में उनका परामर्श सदा काम आता था। वे बहुत कम बोलते थे; पर उनकी बात गोली की तरह अचूक होती थी। अटल जी तथा आडवाणी जी उनसे छोटे थे। अतः आवश्यकता होने पर वे उन्हें भी खरी-खरी सुना देते थे।

संघ, जनसंघ और भा.ज.पा. को अपने संगठन कौशल से सींचने वाले श्री सुंदर सिंह भंडारी का 84 वर्ष की सुदीर्घ आयु में 22 जून, 2005 को अति प्रातः नींद में हुए तीव्र हृदयाघात से देहान्त हो गया।

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