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प्यार का सबक सिखाने वाला सख्तजान फौजी विजयंत थापर “29 जून / बलिदान दिवस”

प्यार का सबक सिखाने वाला सख्तजान फौजी विजयंत थापर “29 जून / बलिदान दिवस”

22 साल के छोटे से दौर में विजयंत ने जी भर के ज़िन्दगी जी. खेले, प्यार किया, अपनी पसंद के पेशे को चुना और जब मौका आया, वतन के लिए जान देने से पीछे नहीं हटे.

26 दिसंबर 1976 को जन्मे विजयंत सैनिकों के परिवार से आते थे. परदादा डॉ. कैप्टन कर्ता राम थापर, दादा जेएस थापर और पिता कर्नल वीएन थापर सब के सब फौज में थे. इसलिए विजयंत क्या बनेंगे, ये सवाल कभी उनके मन में उठा ही नहीं. वो ‘बॉर्न सोल्जर’ थे. जब उनके पिता रिटायर हुए, लगभग तभी उन्होंने कमिशन लिया 2 राजपूताना राइफल्स में. दिसंबर 1998 में. तब से बमुश्किल 6 महीने पहले जब पाकिस्तान ने वादाखिलाफ़ी करते हुए गैरकानूनी ढंग से कारगिल की चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया. विजयंत की यूनिट जो कुपवाड़ा में आतंक विरोधी अभियान चला रही थी, घुसपैठियों को भगाने तोलोलिंग की ओर द्रास भेजी गई.

कै. विजयंत आर्मी की 2 राजपूताना राइफल रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे। मेजर पदमपाणि आचार्य, कै नेइकेझाकुओ केंगरूस और लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के नेतृत्व में उनकी यूनिट ने 28 जून की रात को करगिल के द्रास सेक्टर की चोटी पर हमला बोला। 16 हजार फुट ऊंचाई पर दुश्मन से मुठभेड़ में तीन सैन्य अधिकारियों समेत कई जवान शहीद हो गए, पर वे चोटी को आजाद करा चुके थे।
विजयंत की बटालियन ने जब 13 जून 1999 को तोलोलिंग जीता, तो वो कारगिल में हिंदुस्तानी फौज की पहली जीत थी. इसके बाद उन्हें नोल एंड लोन हिल पर ‘थ्री पिम्पल्स’ से पाकिस्तानियों को खदेड़ने की ज़िम्मेदारी मिली. चांदनी रात में पूरी तरह से दुश्मन की फायरिंग रेंज में होने के बावजूद विजयंत आगे बढ़े. हम ‘थ्री पिम्पल्स’ जीत गए लेकिन इस अभियान में हमने विजयंत को खो दिया. उन्हें शहादत मिली. विजयंत को वीर चक्र एवम कैप्टन का रैंक मरणोपरांत दिया गया.

कश्मीर में सेना और आम लोगों के बीच आम तौर पर तनाव के किस्से सुनने को मिलते हैं लेकिन विजयंत इस मामले में अलहदा थे. कुपवाड़ा में अपनी पोस्टिंग के दौरान वो एक बच्ची रुखसाना से मिले जिसने अपनी आंखों के सामने अपने मां-बाप को आतंकवादियों के हाथों क़त्ल होते देखा था. इस हादसे ने उस बच्ची से उसकी आवाज़ छीन ली थी. उस बच्ची की मासूमियत पर विजयंत का दिल आ गया और वो उस से रोज़ मिलने लगे. धीरे-धीरे विजयंत के प्यार ने जादू दिखाया और बच्ची बोलने लगी.

विजयंत ने जब अपने घर ख़त लिख कर एक लड़की के लिए कपड़े मंगाए तो उनके घर वाले ज़रा चौंके. उन्हें बाद में मालूम चला कि वो लड़की दरअसल एक प्यारी सी बच्ची है.

जब विजयंत ‘थ्री पिम्पल्स’ पर चढ़ाई करने जा रहे थे, तब उन्होंने अपने परिवार के नाम एक ख़त छोड़ा. ये उनके वापस ना आने की सूरत में उनके परिवार को दिया जाना था. जज़बातों के उमड़ते सैलाब के बावजूद उन्होंने बड़े साफ़ और सीधे लफ़्ज़ों में अपनी बात कही. और इस ख़त को लिखते हुए भी वो रुखसाना को नहीं भूले. उन्होंने लिखा कि अनाथालय में कुछ पैसे दान करें और रुखसाना को 50 रूपए बराबर भेजते रहें.’

फौजियों को लेकर एक धारणा लोगों के मन में बनी हुई है कि वो सख्तजान ,जज़्बातों से परे और कठोर होते हैं. ये उनके पेशे की ज़रूरत समझी जाती है. लेकिन ऐसा सोचने में हम ये भूल कर देते हैं कि वर्दी के अंदर एक इंसान ही होता है, जिसका दिल हमारी-आपकी तरह ही धड़कता है. विजयंत ने अपनी छोटी सी उम्र में ‘जेंटलमैन सोल्जर’ जुमले को सही मायनों में अर्थ दिया.

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