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सन्यास लेकर स्वामी अमरानंद बने, जनजाति समाज की सेवा में जीवन लगा दिया(जन्मदिवस)

सन्यास लेकर स्वामी अमरानंद बने, जनजाति समाज की सेवा में जीवन लगा दिया

स्वामी जी की जयंती पर संक्षिप्त जीवन परिचय के रूप में श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

स्वामी अमरानन्दजी का बचपन का नाम सीताराम था। उनका जन्म 15 जुलाई 1918 को महाराष्ट्र के मोरगांव में हुआ। माता का नाम सरस्वतीबाई और पिता का नाम भालचंद्र उपाख्य बापू इनामदार था। आपने इंटर तक की पढ़ाई पूरी की और सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय सेना में वाहनों की कार्यशाला में पर्यवेक्षक के रूप में भर्ती हो गए। लेकिन देशप्रेमी मन को यह नौकरी रास नही आई, अतः युद्ध समाप्ति के बाद नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

इसके पश्चात् नागपुर में रामकृष्ण आश्रम से सक्रिय रूप से जुड़ गए, और उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। दीक्षा के साथ ही उनका आध्यात्मिक नाम ‘स्वामी अमरानंद’ हो गया। पश्चात देश में विभिन्न स्थानों पर स्वामीजी का भ्रमण हुआ।

एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक पूजनीय गुरूजी के आग्रह पर वे 1972 में जशपुर में आए। इसके बाद स्वामीजी का जनजाति गांवों में सदैव भ्रमण होने लगा था। प्रारंभ में वे मोटरसाईकिल से भ्रमण करने लगे, तो कभी जीप से प्रवास करते हुए जनजागरण का कार्य चल रहा था।

जब अमरानंद जी ग्रामीण क्षेत्र में काम हेतु प्रवास करते तो ग्रामीण कार्यकर्ता सोनू भगत, बूमतेल के फकिरा भगत, कुजरी के जरिगा भगत, सनिया राम, बहादुर राम, रामटहल राम आदि कार्यकर्ता साथ में प्रवास करते। उन्होंने “नर सेवा यही नारायण सेवा” के मंत्र को प्रत्यक्ष में चरितार्थ करना प्रारम्भ किया। उनके आचरण का प्रभाव सर्वत्र देखने को मिला।

जब वे जशपुर आश्रम परिसर में होते तो कई जनजाति बंधु उन्हें मिलने आते। श्रद्धा जागरण की अलख जगाने वाले इस संत ने जनजाति समाज के हृदय में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। आज भी कई जनजाति बंधु बड़े भक्तिभाव से उनका स्मरण करते हैं।

संन्यास तो लिया परन्तु केवल आत्म उन्नति के लिये नहीं। सारे समाज में ईश्वर का दर्शन कर जीवन के अंतिम क्षण तक समाजपुरुष की परमात्मा के रूप में पूजा की। इस कार्य को 33 वर्षों तक करने के पश्चात 4 दिसंबर 2005 को स्वामीजी परलोक गमन कर गए।

जनजाति समाज के उत्थान में कार्यरत स्वामीजी तो हमारे बीच आज नहीं है, परन्तु उनकी स्मृति, प्रेरणा एवं आध्यत्मिक चेतना तो आज भी हैं। इसी का परिणाम है कि आज भी हम जब कभी जशपुर केन्द्र पर जाएंगे तो ऐसा लगता है मानो आज स्वामी जी के दर्शन अवश्य होंगे।

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