सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 12
मराठा रानी जिन्होंने औरंगजेब की मुगल सेनाओं के विरुद्ध सफलतापूर्वक अपने राज्य की रक्षा की…
सन् 1707 ई में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठों और मुगलों के बीच 27 वर्षीय युद्ध समाप्त हो गया।
छत्रपति सम्भाजी के ज्येष्ठ पुत्र शाहू जी को कारागृह से रिहा कर दिया गया और उन्होंने मराठा सिंहासन पर अपना दावा पेश किया। शिवाजी (द्वितीय) उस समय भी नाबालिग थे, इसलिए अधिकतर मराठा सरदारों ने शाहूजी का ही साथ दिया।
ताराबाई भोंसले को को सत्ता से दूर कर शाहूजी छत्रपति बने। ताराबाई ने कोल्हापुर में सन् 1709 ई में अलग मराठा दरबार की स्थापना की, परंतु वहाँ राजसबाई ने उन्हें हटाकर अपने पुत्र संभाजी (द्वितीय) को इस गद्दी पर बैठा दिया। ताराबाई और शिवाजी (द्वितीय)को राजसबाई ने कारागार में डलवा दिया।
शिवाजी (द्वितीय) की मृत्यु सन् 1726 ई में हो गई। इसके बाद ताराबाई और शाहूजी महाराज में सुलह हो गई और उन्हें कारागार से मुक्त करा लिया गया। परंतु उनके हाथ में कोई राजनीतिक शक्ति नहीं रह गई थी।
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में ताराबाई ने फिर से कुछ राजनैतिक प्रभाव कायम कर लिया था। उनकी मृत्यु पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद दिसंबर 1761 में 86 वर्ष की आयु में हुई। इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली के अफ़गानों द्वारा मराठों की दुर्भाग्यपूर्ण हार हुई थी। ताराबाई ने उस समय मराठा तलवार को धार दी जब उस पर मुगलों तथा अन्य दक्खन के मुस्लिम राज्यों का बहुत दबाव था।