सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14
मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…
तिरोत सिंह और उनके साथी रात के अंधेरे में अचानक ब्रिटिश चौकियों पर आक्रमण करते, सिपाहियों को मार डालते, चौकियों को जला देते, और फिर उसी अंधेरे में गायब हो जाते।
अंग्रेजों को अब अत्यंत भय लगने लगा था। ब्रिटिश ऑफिसर और सिपाही खासी इलाकों में तैनाती से ही अब डरने लगे थे। उन्होंने खासी क्षेत्र में और अतिरिक्त सेना भेज दी।
तिरोत सिंह और उनके लोगों को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने कई स्थानों पर छापे मारे। किन्तु तिरोत सिंह इस खेल में उनसे कहीं आगे थे। उनके गुप्तचर पूरे क्षेत्र में फैले हुए थे। अंग्रेजों की किसी भी छोटी से छोटी कार्यवाही की उन्हें अग्रिम जानकारी हो जाती थी।
तिरोत सिंह और उनके अधिकतर मुख्य साथी घने जंगलों में दुर्गम गुफाओं में रहते थे। अंग्रेज पूरी कोशिश के उपरांत भी उन तक नहीं पहुँच पा रहे थे, जबकि तिरोत सिंह और उनके साथी अपना छापामार अभियान उसी सफलता के साथ चला रहे थे। ऐसा निरंतर 4 वर्षों तक चलता रहा।