पुण्यतिथि हर दिन पावन

शुद्धता के अनुरागी उस्ताद असद अली खां “14 जून/पुण्य-तिथि”

शुद्धता के अनुरागी उस्ताद असद अली खां “14 जून/पुण्य-तिथि”

आजकल संगीत में सब ओर मिलावट (फ्यूजन) का जोर है। कई तरह के देशी और विदेशी वाद्य एक साथ मंच पर स्थान पा रहे हैं। कभी-कभी तो शास्त्रीय और विदेशी शैलियों को मिलाकर बने कार्यक्रम को देख और सुनकर सच्चे संगीत प्रेमी सिर पीट लेते हैं। एक ओर कान फाड़ने वाला विदेशी संगीत, तो दूसरी ओर मन को अध्यात्म की ऊंचाई और सागर की गहराई तक ले जाने वाला शास्त्रीय गायन; पर नये प्रयोग के नाम पर सब चल रहा है।

लेकिन संगीत की इस भेड़चाल के बीच अनेक कलाकार ऐसे भी हैं, जिन्होंने शुद्धता से कभी समझौता नहीं किया। ऐसे ही एक संगीतकार थे उस्ताद असद अली खां, जिन्होंने रुद्रवीणा बजाकर अपार ख्याति अर्जित की।

असद अली खां का जन्म 1937 में राजस्थान के अलवर में हुआ था। उनके दादा और परदादा वहां राज दरबार के संगीतकार थे। जब वे बहुत छोटे थे, तो उनके पिता उ0प्र0 के रामपुर में आकर बस गये। छह वर्ष की अवस्था से ही असद अली अपने गुरु से रुद्रवीणा सीखने लगे। अगले 15वर्ष तक उन्होंने प्रतिदिन 14 घंटे इसका अभ्यास किया। 1965 में पिता के देहांत के बाद उन्होंने दिल्ली के भारतीय कला केन्द्र और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में रुद्रवीणा की शिक्षा दी। जहां एक ओर वे इस बात से असंतुष्ट रहते थे कि युवा पीढ़ी शुद्धता के प्रति आग्रही नहीं है, वहां दूसरी ओर शासन और दिल्ली वि.वि. के संगीत विभाग ने भी रुद्रवीणा की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।

उस्ताद असद अली खां ध्रुपद की चार बानियों में से एक ‘खंडारबानी’ के महान संगीतकार थे। धारदार फरसे जैसे शस्त्र ‘खंडे’ के नाम से बनी इस बानी की धार, चोट और तीक्ष्णता भी वैसी ही थी। उनका मानना था कि रुद्रवीणा को भगवान शंकर ने बनाया है। अतः इसके राग और अवययों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। वे कहते थे भारतीय शास्त्रीय गायन को केवल पुस्तकों से पढ़कर और कैसेट या सी.डी से सुनकर नहीं सीखा जा सकता। इसके लिए श्रद्धाभाव से गुरु के चरणों में बैठना आवश्यक है।

उस्ताद असद अली खां का कहना था कि जिस क्षेत्र में राजनीति पहुंच जाती है, वहां का सत्यानाश हो जाता है। इसलिए वे संगीत में राजनीति के बहुत विरोधी थे। वे गीत और संगीत को साधना, पूजा और उपासना की श्रेणी में रखते थे। श्रोताओं को प्रसन्न करने के लिए किसी भी समय,कुछ भी और कैसे भी गाने-बजाने के वे विरोधी थे। वे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने से पहले उसके शास्त्रीय पक्ष को श्रोताओं को बहुत देर तक समझाते थे। इस प्रकार वे श्रोताओं के मन और बुद्धि से संबंध जोड़कर फिर रुद्रवीणा के तारों को छेड़ते थे।

उस्ताद असद अली खां शास्त्रीय गायन के साथ ही मधुर गायन के भी प्रेमी थी। वे खेमचंद्र प्रकाश, मदन मोहन, नौशाद जैसे संगीतकारों के प्रशंसक थे। उनका कहना था कि यदि शिष्य ने पूरे मन से किसी सच्चे गुरु से शिक्षा पाई है, तो आलाप के पहले स्वर से ही उसका प्रकटीकरण हो जाता है। गुरु और शिष्य के बीच के पवित्र संबंध को वे ‘जिन्दा जादू’कहते थे।

रुद्रवीणा बहुत भारी वाद्य है; पर उसे कंधे पर रखते ही वे मानो राजा बन जाते थे। देश-विदेश से उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें 2008 में मिला पद्मभूषण भी है। 14 जून, 2011 को शुद्धता और शास्त्रीयता के अनुरागी इस संगीतकार का देहांत हुआ।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video