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वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया/ जन्मोत्सव)

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया/ जन्मोत्सव)

              महान् योद्धा बलिदानी,राष्ट्र भक्तों के प्ररेणा श्रोत एवं परम् वीर महाराणा प्रताप का ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया विक्रमी संवत् 1,597 (9 मई 1,540 ई).को राजस्थान के मेवाड़ में सूर्य वंशी सिसोदिया राजवंश के राजपूताना कुंभलगढ़ दुर्ग में महारानी जीवत (जयवंता) कँवर के गर्भ से हुआ. इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था.महाराणा प्रताप वीरता, शौर्य,त्याग और दृढ प्रण के लिए अमर है. उन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कईं वर्षों तक संघर्ष किया. महाराणा प्रताप ने मुग़लों को बहुत बार युद्ध में भी हराया और हिन्दुस्तान के पूरे मुग़ल साम्राज्य को घुटनों पर ला दिया.
                महाराणा प्रताप का प्रथम राज्यभिषेक 28 फरवरी 1,572 में गोगुन्दा में हुआ था, लेकिन विधि विधानस्वरूप द्वितीय राज्यभिषेक 1,572 ई. में ही कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ, दूसरे राज्यभिषेक में जोधपुर का राठौड़ शासक राव चंद्रसेन भी उपस्थित थे. राणा प्रताप की 11 पत्नियाँ, पाँच बेटियाँ और सत्रह बेटे थे.
                मुग़ल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किये जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1,572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1, 573 ई. में), भगवान दास (सितम्बर 1,573 ई. में) तथा टोडरमल (दिसम्बर 1,573 ई. में) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया जिसके फलस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ. यह युद्ध 18 जून 1,576 ई. में मेवाड़ तथा मुग़लों के मध्य हुआ. यह युद्ध 3 घण्टे से अधिक चला. इस युद्ध में 1,600 सैनिक मेवाड़ के तथा 7,800 सैनिक मुग़लों के मारे गए थे.
                इस युद्ध में मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया. इस युद्ध को आसफ खाँ ने जेहाद की संज्ञा दी. इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की. वहीं ग्वालियर के नरेश *राजा रामशाह तोमर* भी अपने तीनों पुत्रों एवं कईं वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया.
              दूसरे युद्ध में शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर बचाया और महाराणा को युद्ध भूमि में छोड़ने को कहा. शक्ति सिंह ने अपना अश्व (घोड़ा) देकर महाराणा को बचाया.
                 महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था, युद्ध के दौरान चेतक ने किले से छलांग लगा दी थी. जिसके बाद वह घायल हो गया और कुछ दिन बाद चेतक की मृत्यु हो गयी. यह युद्ध केवल एक दिन चला और इसमें 17,000 लोग मारे गए. 24,000 हजार सैनिकों के 12 वर्षों तक गुजारे लायक अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ.
                इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ. पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई. क्योंकि मुट्ठी भर राजपूतों ने अकबर की विशाल सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई थी.
                  1,579 के बाद मेवाड़ पर मुग़ल दबाव कम हुआ और प्रताप ने कुम्भलगढ़, उदयपुर और गोगुन्दा सहित पश्चिमी मेवाड़ को पुनः प्राप्त कर लिया. इस अवधि के दौरान उन्होंने आधुनिक डूंगरपुर के पास एक नई राजधानी चावंड का भी निर्माण किया.

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