सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-20
जिन्होंने ब्रिटिश राज का विरोध किया और उन्हें दो बार हराया…
हमारी इतिहास की पाठ्य पुस्तकें आततायी आक्रमणकारियों और विदेशीयों के कारनामों से भरी हुई हैं। हमारे बहुत सारे ऐसे वीरों और नायकों का वर्णन ही नहीं मिलता है, जिन्होंने इन आक्रमणकारियों और विदेशीयों का डटकर प्रतिरोध किया और उन्हें मात दी। जब तक हम इन सब के बारे में पढ़ेंगे नहीं, तब तक हम इनके जीवन से कैसे प्रेरणा लेंगे?
ऐसे ही एक वीर थे वीरापांड्या कट्टाबोम्मन!
उन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया, उन्हें कर (टैक्स) देने से इंकार कर दिया। उनके विरुद्ध युद्ध किया और निरंतर लड़ते रहे। मात्र 39 वर्ष की आयु में उन्हें फाँसी नहीं हो गई। वे अपनी मातृभूमि के लिए फाँसी चढ़ गए, परंतु अंग्रेजों के आगे कभी सिर नहीं झुकाया।
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन का जन्म 3 जनवरी, 1760 को पंचालनकुरीची में एक नायक्कर परिवार में जगवीरा कट्टाबोम्मन और अरुमुगाथम्मल के घर हुआ था। पंचालनकुरीची वर्तमान में तमिलनाडु के तूथुकुड़ी जिले में है।