सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-20
जिन्होंने ब्रिटिश राज का विरोध किया और उन्हें दो बार हराया…
सन् 1731 में मदुरई के नायक्कर राजा विजय रंगा चोक्कानथा की मृत्यु के पश्चात् उनकी रानी मीनाक्षी गद्दी पर बैठीं। अर्कोट के नवाब के दीवान चंदा साहिब ने धोखे से सत्ता हथिया ली। इस तरह से नायक्कर राज्य समस्त 72 पलायम के साथ नवाब के कब्जे में आ गया। परंतु सभी पलायक्करों ने नवाब को अपना अधिपति मानने से इंकार कर दिया और किसी भी तरह का कर देने से भी मना कर दिया।
नवाब ने अंग्रेजों से मोटी रकम उधार पर ली हुई थी और वह दिवालिया हो चुका था। अंग्रेजों का कर्ज चुकाने में असमर्थ होने पर उसने पलायमों से कर एकत्रित करने का अधिकार अंग्रेजों को दे दिया।
सन् 1790 तक अंग्रेजों ने तमिलनाडु को कर तथा अन्य तरीकों से खूब लूटा। धीरे-धीरे सारे पलायम अंग्रेजों को कर देने लगे, परंतु वीरापांड्या कट्टाबोम्मन अंग्रेजों के समक्ष नहीं झुके।
बार-बार कहने पर भी वीरापांड्या कट्टाबोम्मन ने अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया और उन्हें कोई कर भी नहीं चुकाया। अंग्रेजों ने क्षेत्र के कलेक्टर जैक्सन (Jackson) को कट्टाबोम्मन से मिलकर उन्हें रास्ते पर लाने के लिए कहा। बार-बार कहने के उपरांत भी काफी दिन तक वीरापांड्या कट्टाबोम्मन कलेक्टर जैक्सन से मिलने के लिए राजी नहीं हुए। आखिर बहुत मानमनौव्वल के पश्चात् वीरापंड्या कट्टाबोम्मन रामानाथपुरम के सेतुपति के महल ‘रामालिंगा विलासम’ में जैक्सन से मिलने के लिए तैयार हुए।