विनायक लक्ष्मण केरूनाना छत्रे “16 मई/जन्म दिन”
विनायक लक्ष्मण छत्रे, उर्फ़ केरूनाना छत्रे का जन्म 16 मई 1824 में अलीबाग के पास नागाव में हुआ. बाल्यकाल में ही माता-पिता की छाया सिर से उठ जाने के कारण वे अपने काका के यहाँ मुम्बई आ गए. मुम्बई में छत्रे परिवार की बाणगंगा – वालकेश्वर स्थान पर एक बड़ी इमारत और जमीन वगैरह थी. पढ़ाई के लिए मुम्बई आने वाले छत्रे को बाल्यकाल से ही गणित, खगोलशास्त्र एवं विज्ञान जैसे गूढ़ विषयों में रूचि थी. आगे चलकर पुणे के एल्फिन्स्टन इंस्टीट्यूट में उन्हें पढ़ाने वाले आचार्य बाळ शास्त्री जाम्भेकर तथा प्रोफ़ेसर आर्थर बेडफ़ोर्ड आर्लिबार द्वारा उन्हें अनमोल मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. 1840 के आसपास का वह कालखंड भारत में अंगरेजी सीखने की शुरुआती समय था. केरूनाना छत्रे ने मन लगाकर पढ़ाई की तथा अंगरेजी सहित सभी विषयों में प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त किया.
केरूनाना के गुरु यानी प्रोफ़ेसर आर्लिबार ने 1840 में मुम्बई के कुलाबा स्थित जमीन पर एक वेधशाला का आरम्भ किया. प्रोफ़ेसर आर्लिबार को चुम्बकत्व एवं खगोलशास्त्र जैसे विषयों में कुछ ख़ास प्रयोग करने थे, इसलिए तत्कालीन मुम्बई सरकार ने वेधशाला की स्थापना हेतु अनुदान भी दिया (सनद रहे, सन 1840). केरूनाना इतने प्रतिभाशाली थे कि आयु के सोलहवें वर्ष में ही उन्हें प्रोफ़ेसर आर्लिबार ने अपनी वेधशाला में नौकरी करने का प्रस्ताव दिया. प्रतिमाह वेतन – पचास रूपए (उस कालखंड का जबरदस्त पॅकेज). केरूनाना द्वारा मना करने का सवाल ही नहीं उठता था. एक तो मनपसंद विषय, मनपसन्द गुरु और मात्र सोलह वर्ष की आयु में पचास रूपए जैसा शानदार वेतन. अगले दस वर्षों तक केरूनाना ने यह नौकरी पूरी ईमानदारी और कड़ी मेहनत से की. इन दस वर्षों के अपने वेधशाला के अनुभवों से केरूनाना को समझ में आया कि भारतीय परंपरा के अनुसार बनाए जाने वाले पञ्चांग का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से आकाश में ग्रहों की स्थिति से सटीक मेल नहीं खाता. इसका कारण था, भारतीय पञ्चांग परंपरा का रूढ़िवादी होना तथा कालबाह्य हो चुके गणित का प्रयोग करना. इस कारण होता यह था कि ग्रहों की स्थिति एवं पञ्चांग के बीच सटीक सामंजस्य नहीं बैठता था. उन्होंने इस दिशा में शोध करने का विचार किया, परन्तु समयाभाव के कारण वे कर नहीं सके. लेकिन इतना जरूर हुआ कि प्रोफ़ेसर आर्लिबार जैसे गुरु और वेधशाला की नौकरी ने केरूनाना के मनोमस्तिष्क में वैज्ञानिक विचारों की अमिट छाप छोड़ दी.
मुम्बई में 1848 में अंगरेजी के वैज्ञानिक ज्ञान को मराठी में लाने हेतु “ज्ञान प्रसारक सभा” नामक संस्था का गठन हुआ था. इस संस्था की सभाओं में केरूनाना ने 17 अलग-अलग विषयों पर अपने शास्त्रीय निबंधों का वाचन किया. इसमें “ज्वार-भाटा के नियम”, “कालगणना”, “सूर्य पर स्थित धब्बे” जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों का समावेश था. 19 मार्च 1884 में महान गणितज्ञ केरुनाना का देहांत हुआ l
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