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5000 सालों से इजराइल का इलाका यहूदियों का है, यह पूरा सच बताने में मीडिया क्यों डरता है?

5000 सालों से इजराइल का इलाका यहूदियों का है, यह पूरा सच बताने में मीडिया क्यों डरता है?

-बहुत सारे लोग ये प्रोपेगेंडा लगातार कर रहे हैं कि अगर इजराइल ने 1948 में फिलिस्तीन के इलाके पर कब्जा नहीं किया होता तो आज ये संकट पैदा नहीं होता, ये लिबरल, जिहादी, कम्युनिस्ट, सेकुलर और बुद्धिजीवी टाइप के लोग हैं जो कि इजराइल को नैतिक रूप से गलत बताने की कोशिश कर रहे हैं ! लोगों को सही इतिहास की जानकारी नहीं है इसीलिए मुसलमान बहुत सारे हिंदुओं को भी बहका लेते हैं और फिलीस्तीन के समर्थन में अपने साथ खड़ा कर लेते हैं

इजराइल को समझने के लिए हमको जेरूसलम का इतिहास समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि जेरूसलम ही, इजराइल या फिलिस्तीन जो भी नाम दें, इस इलाके, का सबसे पुराना शहर है ! अब जेरूसलम पर जिसका पहला कब्जा होगा उसी को इस इलाके का असली मालिक माना जाएगा, तो आइए इतिहास पर नजर डालते हैं

-आज से करीब 5,000 वर्ष पहले Jerusalem में इंसानों ने बसना शुरू किया ।
आज से 3 हजार वर्ष पहले यहूदियों के King David ने Jerusalem को अपने यहूदी साम्राज्य की राजधानी बनाया ।

-King David के बाद उनके बेटे Solomon ने Jerusalem में पहला धर्मस्थल बनाया । ये यहूदियों का धर्मस्थल था । यहूदियों के इतिहास में King Solomon का बहुत सम्मान है । इस तरह देखा जाए तो Jerusalem, यहूदियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण शहर है और इसीलिए इसराइल पर सबसे पहले कब्जा यहूदियों का ही माना जाना चाहिए !

-आज से 1 हज़ार 987 वर्ष पहले Jerusalem में ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था । इस तरह ईसाईयों के लिए भी Jerusalem एक बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस घटना के करीब 600 वर्ष बाद Jerusalem मुस्लिमों के लिए भी एक बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया । क्योंकि इस्लाम में ये मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने Jerusalem से ही स्वर्ग की यात्रा की थी। यानी तीनों ही धर्मों के लिए Jerusalem एक पवित्र शहर है । और तीनों ही धर्म के लोगों ने हमेशा Jerusalem पर नियंत्रण करने की कोशिश की। चाहे कुछ भी हो जाए…. Jerusalem पर कब्ज़े को ईसाईयों, मुसलमानों और यहूदियों ने हमेशा अपनी आन बान और शान से जोड़ कर देखा है।

-Jerusalem पर कब्ज़े के लिए ईसाईयों और मुसलमानों के बीच 200 वर्ष तक युद्ध लड़ा गया है । इन युद्धों को पश्चिम के इतिहासकारों ने Crusades कहा । इन धर्मयुद्धों के केंद्र में Jerusalem था । Jerusalem पर कब्जे के लिए ईसाइयों और मुसमलानों के बीच कई धर्मयुद्ध लड़े गए ।

-Jerusalem के लिए पहला धर्मयुद्ध वर्ष 1098 से 1099 के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में यूरोप के देशों की जीत हुई थी और Jerusalem पर ईसाईयों ने कब्जा जमा लिया था।

-दूसरा धर्मयुद्ध वर्ष 1145 से वर्ष 1149 के बीच लड़ा गया । इस युद्ध के बाद ईसाइयों की पकड़ Jerusalem पर कमज़ोर हो गई ।

-जबकि तीसरा धर्मयुद्ध वर्ष 1189 ईस्वी में शुरू हुआ । इस धर्मयुद्ध में ईसाइयों की बहुत बुरी हार हुई । Egypt और Syria के सुल्तान सलादीन यूसुफ ने Jerusalem पर कब्ज़ा जमा लिया । और Jerusalem पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।

-इसके बाद दो और धर्मयुद्ध हुए लेकिन इनमें यूरोपीय देशों को सफलता नहीं मिली। इसके बाद 20वीं शताब्दी में पहला विश्व युद्ध खत्म होने तक… यानी वर्ष 1917 तक Jerusalem पर मुसलमानों का कब्ज़ा रहा।

-इतिहासकारों का मानना है कि सबसे पहले Jerusalem, यहूदियों के राजा King David की राजधानी थी । लेकिन ईसाई और इस्लाम धर्म के विस्तार के बाद यूरोप और एशिया में यहूदी लगातार कमजोर होते गए । यहूदी लोग पूरी दुनिया में बिखर गए और उन पर अत्याचार शुरू हो गए ।

-19वीं शताब्दी में थियोडौर हैरत्ज़ल नाम के एक यहूदी विचारक थे। उन्होंने यहूदी राष्ट्रवाद की नींव रखी थी। इसके बाद पूरी दुनिया के यहूदियों ने ये संकल्प लिया कि Jerusalem उनकी मातृभूमि है और उन्हें दोबारा Jerusalem पर कब्ज़ा करना है।
-इसके बाद बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में पहले विश्व युद्ध के दौरान Jerusalem पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया और 700 वर्षों के बाद Jerusalem.. गैर-मुसलमानों के हाथों में चला गया । और यहीं से Israel की स्थापनी की कहानी शुरू होती है । कहा जाता है कि ब्रिटेन ने यहूदियों को Jerusalem में बसाने का लालच देकर पहले विश्व युद्ध में यहूदियों का समर्थन हासिल कर लिया । बहुत ही चालाकी से ब्रिटेन ने अरब देशों को भी Jerusalem का लालच दिया था ।

-आज के Israel को तब फिलिस्तीन कहा जाता था और उसमें अरब के मुसलमानों की आबादी थी । लेकिन बहुत व्यवस्थित तरीके से यहूदियों ने Jerusalem की तरफ पलायन किया । धीरे-धीरे पूरे इलाके में यहूदियों की आबादी बहुत बढ़ गई और अरब के मुसलमान कमज़ोर होते गए ।

-वर्ष 1947 में United Nations ने Israel को एक देश के तौर पर मान्यता दे दी । लेकिन Jerusalem को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर के तौर पर मान्यता दी गई । ताकि सर्वधर्म समभाव बना रहे । तब Jerusalem पर Israel का नियंत्रण नहीं था ।

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