Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog बलिदान दिवस युवा बलिदानी अनन्त कान्हेरे “19 अप्रैल/बलिदान-दिवस”
बलिदान दिवस हर दिन पावन

युवा बलिदानी अनन्त कान्हेरे “19 अप्रैल/बलिदान-दिवस”


युवा बलिदानी अनन्त कान्हेरे “19 अप्रैल/बलिदान-दिवस”

भारत माँ की कोख कभी सपूतों से खाली नहीं रही। ऐसा ही एक सपूत थे अनन्त लक्ष्मण कान्हेरे, जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए केवल 19 साल की युवावस्था में ही फाँसी के फन्दे को चूम लिया।

महाराष्ट्र के नासिक नगर में उन दिनों जैक्सन नामक अंग्रेज जिलाधीश कार्यरत था। उसने मराठी और संस्कृत सीखकर अनेक लोगों को प्रभावित कर लिया था; पर उसके मन में भारत के प्रति घृणा भरी थी। वह नासिक के पवित्र रामकुंड में घोड़े पर चढ़कर घूमता था; पर भयवश कोई बोलता नहीं था।

उन दिनों नासिक में वीर सावरकर की ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था सक्रिय थी। लोकमान्य तिलक के प्रभाव के कारण गणेशोत्सव और शिवाजी जयन्ती आदि कार्यक्रम भी पूरे उत्साह से मनाये जाते थे। इन सबमें स्थानीय युवक बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।

विजयादशमी पर नासिक के लोग नगर की सीमा से बाहर कालिका मन्दिर पर पूजा करने जाते थे। युवकों ने योजना बनायी कि सब लोग इस बार वन्देमातरम् का उद्घोष करते हुए मन्दिर चलेंगे। जब जैक्सन को यह पता लगा, तो उसने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

नासिक के वकील वामन सखाराम खेर स्वतन्त्रता सेनानियों के मुकदमे निःशुल्क लड़ते थे। जैक्सन ने उनकी डिग्री जब्त कर उन्हें जेल में डाल दिया। उसने ताम्बे शास्त्री नामक विद्वान के प्रवचनों पर रोक लगा दी; क्योंकि वे कथा में अंग्रेजों की तुलना रावण और कंस जैसे अत्याचारी शासकों से करते थे। बाबाराव सावरकर ने वीरतापूर्ण गीतों की एक पुस्तक प्रकाशित की थी। इस पर उन्हें कालेपानी की सजा देकर अन्दमान भेज दिया गया।

जैक्सन की इन करतूतों से युवकों का खून खौलने लगा। वे उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगे। अनन्त कान्हेरे भी इन्हीं में से एक थे। कोंकण निवासी अनन्त अपने मामा के पास औरंगाबाद में रहकर पढ़ रहे थे। वह और उनका मित्र गंगाराम देश के लिए मरने की बात करते रहते थे। एक बार गंगाराम ने उनकी परीक्षा लेने के लिए लैम्प की गरम चिमनी पकड़ने को कहा। अनन्त की उँगलियाँ जल गयीं; पर उन्होंने चिमनी को नहीं छोड़ा।

यह देखकर गंगाराम ने अनन्त को विनायक देशपांडे, गणू वैद्य, दत्तू जोशी, अण्णा कर्वे आदि से मिलवाया। देशपांडे ने अनन्त को एक पिस्तौल दी। अनन्त ने कई दिन जंगल में जाकर निशानेबाजी का अभ्यास किया। अब उन्हें तलाश थी, तो सही अवसर की। वह जानते थे कि जैक्सन के वध के बाद उन्हें निश्चित ही फाँसी होगी। उन्होंने बलिपथ पर जाने की तैयारी कर ली और एक चित्र खिंचवाकर स्मृति स्वरूप अपने घर भेज दिया।

अन्ततः वह शुभ दिन आ गया। जैक्सन का स्थानान्तरण मुम्बई के लिए हो गया था। उसके समर्थकों ने विजयानन्द नाटकशाला में विदाई कार्यक्रम का आयोजन किया। अनन्त भी वहाँ पहुँच गये। जैसे ही जैक्सन ने प्रवेश किया, अनन्त ने चार गोली उसके सीने में दाग दी। जैक्सन हाय कह कर वहीं ढेर हो गया। उस दिन देशपांडे और कर्वे भी पिस्तौल लेकर वहाँ आये थे, जिससे अनन्त से बच जाने पर वे जैक्सन को ढेर कर सकें।

अनन्त को पकड़ लिया गया। उन्होंने किसी वकील की सहायता लेने से मना कर दिया। इस कांड में अनेक लोग पकड़े गये। अनन्त के साथ ही विनायक देशपांडे और अण्णा कर्वे को 19 अप्रैल, 1910 को प्रातः ठाणे के कारागार में फाँसी दे दी गयी।

Exit mobile version