जन्म दिवस हर दिन पावन

रामभक्त राजनेता व साहित्यकार आचार्य विष्णुकांत शास्त्री “2 मई/जन्म-दिवस”


रामभक्त राजनेता व साहित्यकार आचार्य विष्णुकांत शास्त्री “2 मई/जन्म-दिवस”

दो मई, 1929 को कोलकाता में पंडित गांगेय नरोत्तम शास्त्री तथा रूपेश्वरी देवी के घर में जन्मे आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री साहित्य, संस्कृति और राजनीति के अद्भुत समन्वयक थे। मूलतः इनका परिवार जम्मू का था। केवल भारत ही नहीं, तो सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी के श्रेष्ठ विद्वान के नाते वे प्रसिद्ध थे। अपने भाषण में उचित समय और उचित स्थान पर प्रसिद्ध कवियों की कविताओं के अंश उद्धृत करने की उनमें अद्भुत क्षमता थी।

विष्णुकान्त जी की शिक्षा कोलकाता के सारस्वत विद्यालय, प्रेसीडेन्सी काॅलेज और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने अपने छात्रजीवन की सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। 1944 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये, तो फिर सदा के लिए उससे जुड़ गये। तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक महामन्त्री श्री दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से वे अत्यधिक प्रभावित थे।

26 जनवरी, 1953 को उनका विवाह इन्दिरा देवी से हुआ। इसी वर्ष वे कोलकाता विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक हो गये। तुलसीदास तथा हिन्दी के भक्तिकालीन काव्य में उनकी विशेष रुचि थी। यहाँ उनकी साहित्य साधना को बहुविध आयाम मिले। उन्होंने काव्य, निबन्ध, आलोचना, संस्मरण, यात्रा वृत्तान्त आदि विविध क्षेत्रों में प्रचुर साहित्य की रचना की।

1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय धर्मयुग के सम्पादक धर्मवीर भारती के साथ आचार्य जी ने मोर्चे पर जाकर समाचार संकलित किये। बाद में वे धर्मयुग में प्रकाशित भी हुए, जिन्हें देश-विदेश में अत्यधिक प्रशंसा मिली। उनकी अन्य सभी पुस्तकें भी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

आचार्य जी को जो दायित्व दिया गया, वे उससे कभी पीछे नहीं हटे। वे इसे राम जी की कृपा मानकर काम में लग जाते थे। 1977 में वे विधायक निर्वाचित हुए। आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। वहाँ अपनी विद्वत्ता तथा भाषण शैली से वे अत्यधिक लोकप्रिय हुए। हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान के प्रति अनुराग उनकी जीवनचर्या में सदा प्रकट होता था।

दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार बनने पर उन्हें पहले हिमाचल प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। उत्तर प्रदेश के राजभवन में पूरी तरह अंग्रेजी छायी थी। शास्त्री जी ने कमरों के नाम बदलकर नीलकुसुम, अमलतास, तृप्ति, प्रज्ञा, अन्नपूर्णा जैसे शुद्ध साहित्यिक तथा भारतीयता की सुगन्ध से परिपूर्ण नाम रखे। जब केन्द्र में सोनिया गान्धी और मनमोहन सिंह की सरकार आयी, तो उन्हें बहुत अपमानजनक ढंग राज्यपाल पद से हटा दिया गया। इस पर भी वे स्थितप्रज्ञ की भाँति शान्त और निश्चल रहे।

वे सदा मुस्कुराते हुए कोलकाता की प्रायः सभी साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते थे। गीता, भागवत, मानस, पुराणों आदि का उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। श्री रामनवमी (18 अपै्रल) को वे पटना में गीता पर व्याख्यान देने जा रहे थे; पर 17 अपै्रल 2005 को रेल में ही हुए भीषण हृदयाघात से उनका देहान्त हो गया।

इस प्रकार रामभक्त आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री श्रीरामनवमी की पूर्वसन्ध्या पर ही श्रीराम के चरणों मे लीन हो गये।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video