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नारद जयंती (वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया)

नारद जयंती (वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया)

देवर्षि नारद :लोक-कल्याण संचारक और संदेशवाहक

भारतवर्ष का हिमालय क्षेत्र सदैव से ऋषि-मुनियों तथा संतों को आकर्षित करने वाला रहा है। ऋषि अष्टावक्र, देवऋषि नारद, महर्षि व्यास, परसुराम, गुरु गोरखनाथ, मछिंदरनाथ इत्यादि ने हिमालय को अपनी साधना हेतु चुना|
हिन्दू संस्कृति में देवऋषि नारद का शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि वे ब्रह्मा जी के पुत्र हैं, विष्णु जी के भक्त और बृहस्पति जी के शिष्य हैं। इन का तीनों लोकों में भ्रमण के कारण इन्हें एक लोक कल्याणकारी संदेशवाहक और लोक-संचारक के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्राचीन काल में संवाद, संचार व्यवस्था मुख्यतः मौखिक ही होती थी और मेले, तीर्थयात्रा, यज्ञादि कार्यक्रमों के निमित लोग जब इकठे होते थे तो सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे।

वस्तुतः देवऋषि नारद एक अत्यंत विद्वान्, संगीतज्ञ, मर्मज्ञ (रहस्य को जानने वाले) और नारायण के भक्त थे। उनके द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्र प्रसिद्ध हैं। स्वामी विवेकानंद सहित अनेक मनीषियों ने नारद भक्ति सूत्र पर भाष्य लिखे हैं। हिन्दू संस्कृति में शुभ कार्य के लिए जैसे विद्या के उपासक गणेश जी का आह्वान करते हैं वैसे ही सम्पादकीय कार्य प्रारम्भ करते समय देवऋषि नारद का आह्वान करना स्वाभाविक ही है।
भारत का प्रथम हिंदी साप्ताहिक ‘उदन्तमार्तण्ड’ 30 मई, 1826 को कोलकाता से प्रारम्भ हुआ था। इस दिन सम्पादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने आनंद व्यक्त करते हुए कहा था कि देवऋषि नारद की जयंती (वैशाख कृष्ण द्वितीया) के शुभ अवसर पर यह पत्रिका प्रकाशित होने जा रही है क्योंकि एक आदर्श संदेशवाहक होने के कारण नारद जी का तीनों लोकों में समान सहज संचार (कम्युनिकेशन) था| देवऋषि नारद अन्य ऋषियों, मुनियों से इस प्रकार से भिन्न हैं कि उनका कोई अपना आश्रम नहीं है। वे निरंतर प्रवास पर रहते हैं तथा उनके द्वारा प्रेरित हर घटना का परिणाम लोकहित से निकला। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यदि नारद जी को आज तक के विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक कहा जाए तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।

गंगा आदि पतित पावनी नदियों की महिमा तथा पवित्र तीर्थों का महात्म्य; योग, वर्णाश्रम-व्यवस्था, श्राद्ध आदि और छह वेदांगों का वर्णन व सभी 18 पुराणों का प्रमाणिक परिचय ‘नारदपुराण’ की विशेषताएं हैं। व्यावहारिक विषयों का नारद स्मृति में निरूपण किया गया है।
नारद द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्रों का यदि सूक्ष्म अध्ययन करें तो केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरे मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धांतो का प्रतिपादन दृष्टिगत होता है। उनके द्वारा रचित भक्ति सूत्र अनुसार जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। आजकल की पत्रकारिता व् समाचार माध्यमों में परिचर्चाओं का चलन बहुत बढ़ गया है जिसमें समाचार माध्यमों (मीडिया) पर लगातार अर्थहीन व् अंतहीन चर्चाएं होती दिखती हैं।

महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय (लोकपालसभाख्यान पर्व) में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है – देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।

श्रीमद्भागवतगीता के 10वें अध्याय के 26वें श्लोक में श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं:
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम देवरशीणाम च नारद: ।
गन्धर्वाणाम चित्ररथ: सिद्धानाम कपिलो मुनि: ।।
अर्थात मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थवृक्ष (सबसे ऊँचा तथा सुंदर वृक्ष है, जिसे भारत में लोग नित्यप्रति नियमपूर्वक पूजते हैं) हूँ और देवऋषियों में मैं नारद हूँ। मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।
देवऋषि नारद एक ऐसे कुशल मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले लोक-कल्याण संचारक और संदेशवाहक थे जो आज के समय में पत्रकारिता और मीडिया में भी प्रासंगिक है|कहीं भी जब नारद अचानक प्रकट हो जाते थे तो आतिथेय (होस्ट ) की क्या अपेक्षा होती थी? कोई देवता, मानव या दानव उनसे किसी व्यापारिक या कूटनीतिक वार्ता की आशा नहीं करते थे| नारद तो कोई न कोई समाचार ही लेकर आते थे| कहीं ऐसा संदर्भ नहीं आता जब नारद मात्र औपचारिकता निभाने या ‘शिष्टाचार यात्रा’ के लिए कहीं गए हों| पहली बात तो यह कि समाचारों का संवाहन ही नारद के जीवन का मुख्य कार्य था, इसलिए उन्हें आदि पत्रकार मानने में कोई संदेह नहीं है.आज के संदर्भ में इसे हम पत्रकारिता का उद्देश्य मान सकते हैं|

समाचारों के संवाहक के रूप में नारद की सर्वाधिक विशेषता है उनका समाज हितकारी होना | नारद के किसी भी संवाद ने देश या समाज का अहित नहीं किया| कुछ एक ऐसे सन्दर्भ अवश्यमिलते हैं, जिनमें लगता है कि नारद चुगली कर रहे हैं, कलह पैदा कर रहे हैं| परन्तु जब उस संवाद का दीर्घकालीन परिणाम देखते हैं तो अन्ततोगत्वा वह किसी न किसी तरह सकारात्मक परिवर्तन ही लाते हैं| इसलिए मुनि नारद को विश्व का सर्वाधिक कुशल लोक संचारक मानते हुए पत्रकारिता का तीसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया जा सकता है कि पत्रकारिता का धर्म समाज हित ही है|

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