श्रुतम्

भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-18

विध्वंसक चौकड़ी के निशाने पर आदिवासी (वनवासी)-1

ये विध्वंसक चौकड़ी भारत की विविधता को विखंडित करने में बहुत हद तक सफल रही है। उनके इस विखंडन के षडयंत्र का शिकार ‘मुख्य रूप से भारत के वनवासी’ बने हैं।
‘दलित अधिकतर जिहादी दुष्प्रचार के शिकार हुए।’ परन्तु, इसके विपरीत ‘वनवासी उस अलगाववादी दुष्प्रचार का शिकार बने हैं; जिसका उद्देश्य उपनिवेश काल से भारत से अलग, एक ईसाई राष्ट्र बनाने का रहा है।’

हमारे पाठकों को इस पूरे वृत्तांत को समझने में सुविधा हो, इसके लिए हम छोटा सा दृष्टांत प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे आप समझ सकें, कि उपनिवेशकाल से ही अंग्रेजों के इशारे पर किस तरीके से सुनियोजित इसाई धर्मांतरण का कार्य चल था…।

ब्रिटिश सरकार की भारत में तीन भूमिकाएँ थीं। पहली, वे व्यापारी थे; दूसरी, वे शासक थे; और तीसरी भूमिका थी, ईसाई धर्म प्रचारक की।

शासन के आरंभिक वर्षों में कंपनी ने प्रजा के सामाजिक-धार्मिक विषयों को लेकर तटस्थता की नीति अपनाई। *लेकिन स्थानीय नागरिकों की परम्पराओं में हस्तक्षेप न करने की नीति सन् 1813 में कंपनी के चार्टर की समीक्षा के साथ ही बदल गई। *
अंततः, सन् 1833 में इंगलैंड के ईसाई मिशनरियों के दबाव में कंपनी की हस्तक्षेप न करने की नीति पूरी तरह समाप्त हो गई। इसे भारत में मिशनरी अभियान के आरम्भ के रूप में में देखा जाता है।

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