घुमन्तु समाज के उत्थान में सक्रिय है “घुमन्तु कार्य न्यास”

घुमन्तु समाज के उत्थान में सक्रिय है “घुमन्तु कार्य न्यास”

भारत को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था कहने वाले अक्सर इस बात को छुपा जाते हैं कि हमारे यहां वंश परंपरा से अनेक व्यवसाय एवं हस्तशिल्प में परंपरागत विशिष्ट समुदाय रहते हैं जिन्होंने किसी विशेष विधा में निपुणता प्राप्त कर समाज को आर्थिक योगदान दिया इस क्रम में अनेक घुमंतु जातियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी इन घुमंतु जातियों को मध्यकाल में मुगल अत्याचारों एवं ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ा बहुत दुखद तथ्य यह है कि देश की स्वतंत्रता के बाद भी इन जातियों के आर्थिक उन्नयन सामाजिक विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित होने हेतु प्रतीक्षारत हैं

पूरी जाति ही अपराधी घोषित

  • ब्रिटिश काल में 1857 की क्रांति में घुमंतु जातियों का विशेष योगदान रहा कठिन परिस्थितियों में रहने की क्षमता एवं दुर्गम रास्तों की विशेष जानकारी के कारण स्वाभिमानी समाज की इन जातियों ने स्वाधीनता संग्राम में विशेष भूमिका निभाई किस कारण वर्ष 1871 में इन जातियों को अधिसूचित कर अपराधिक जातियों की सूची में डाल दिया गया स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने 1952 में इन जातियों को इस सूची से विमुक्त किया तत्पश्चात इन जातियों को डीएनटी अर्थात विमुक्त जातियां कहा जाता है
  • समाज से मिली अपेक्षा- अपराधिक जातियों की सूची से बाहर किए जाने के बाद भी इन जातीय समुदायों के आर्थिक स्तर एवं सामाजिक सम्मान में कोई वृद्धि नहीं हुई हिंदू समाज का अभिन्न अंग होने के बावजूद इन पुरुषार्थी समुदायों को हिंदू समाज की ही उपेक्षा का शिकार होना पड़ा

घुमंतू उत्थान न्यास का गठन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अमानवीय स्थितियों में जीने वाले इन उपेक्षित समाज बंधुओं को विकास की मुख्यधारा में लाने एवं सम्मानजनक जीवन देने की दिशा में संकल्प लिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आधारभूत चिंतन है की “हिन्दव सोदरा सर्वे न हिंदू पतितो भवेत्” इस देव वाक्य को दृष्टिगत रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने घुमंतू जाति उत्थान न्यास का गठन किया इस न्यास के तत्वावधान में घुमंतू जाति के बंधु भगिनीयो को एक सम्मानजनक जीवन देने के बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं देश भर में प्रत्येक राज्य में अलग-अलग घुमंतु जातियों विद्यमान है देश काल परिस्थिति के अनुसार सभी जातियों की चुनौतियां एवं उनके समाधान केंद्र इन एवं स्थानीय स्तर के हैं। इन जातियों का स्थाई आवास ना होना इनके विकास की प्रमुख बाधा है। यायावर जीवन के कारण इनके आधार कार्ड मतदाता पहचान पत्र इत्यादि बनवाना भी एक बड़ी चुनौती है।………
रविन्द्र शर्मा

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