अयोध्या संस्मरण- कारसेवा की वीरगाथाएं – (भाग-१)
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संघ परिवार को एंट्री…सुग्रीव किला की बैठक में पास हुआ मंदिर मुक्ति का पहला प्रस्ताव; पूरी कहानी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जरूर हिंदुत्व के सरोकारों पर जनजागरण का काम कर रहा था। उसके प्रचारक और स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से अयोध्या मामले पर चिंता तो जताते, लेकिन बतौर संगठन इस मुद्दे पर सक्रिय नहीं थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया।
वर्ष था 1978 का। उस समय भी कांग्रेस के ही कुछ महत्वपूर्ण नेता राघव दास की राह पर अयोध्या, मथुरा व काशी की मुक्ति के लिए निजी तौर पर प्रयास करते दिख रहे थे।
संघ ने इस भावी ताकत को भांपते हुए धर्म व अध्यात्म पर अधिकार पूर्वक बात रखने वाले पांच प्रचारकों अशोक सिंहल, ओंकार भावे, मोरोपंत पिंगले, आचार्य गिरिराज किशोर तथा महेश नारायण सिंह को चुना।
इन्हें रामजन्मभूमि मुक्ति को लेकर निर्मोही, दिगंबर अखाड़ा, हिंदू महासभा और गोरक्षपीठ की साझा कोशिशों की बुनियाद पर हिंदुओं के जनजागरण का खाका खींचने का काम सौंपा। तब तक विहिप का गठन हो चुका था। पर, अभी इस आंदोलन में बतौर संगठन एंट्री नहीं हुई थी।
===02 – श्रीश दीक्षित जी
देखो राम आए हैं…: अशोक सिंहल को अयोध्या पहुंचाने में पूर्व डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित बने थे ‘सारथी’
अशोक सिंहल और श्रीश दीक्षित के लिए लखनऊ मेल में फर्स्ट एसी का टिकट आरक्षित किया गया था।
ट्रेन से लेकर बसों तक में, सड़कों पर सब जगह पहरा था। सघन जांच चल रही थी। ऐसे में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे प्रमुख लोगों को अयोध्या जी पहुंचना बड़ी चुनौती थी। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंहल भी उनमें शामिल थे।
दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उत्तर प्रदेश की तरफ जाने वाली ट्रेनों को लेकर खास सक्रियता बरती जा रही थी।
वीएचपी के कार्यकर्ता दोनों को एसी बोगी में ही बैठाकर गए लेकिन सख्ती को देखते हुए दोनों ही योजना के अनुसार कंबल ओढ़कर स्लीपर कोच की महिला बोगी में चढ़ गए।
बकौल बेला अशोक सिंहल और श्रीश दीक्षित के लिए लखनऊ मेल में फर्स्ट एसी का टिकट आरक्षित किया गया था। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उत्तर प्रदेश की तरफ जाने वाली ट्रेनों को लेकर खास सक्रियता बरती जा रही थी। वीएचपी के कार्यकर्ता दोनों को एसी बोगी में ही बैठाकर गए, लेकिन सख्ती को देखते हुए दोनों ही योजना के अनुसार चुपचाप कंबल ओढ़कर स्लीपर कोच की महिला बोगी में चढ़ गए। पुलिस एक-एक कोच में उनको खोज रही थी। कोच का दरवाजा खोलते हुए पुलिस वाले ने अरे यह तो जनाना डिब्बा है कहकर गेट बंद कर दिया।
लखनऊ पहुंचने से पहल चेन खींच खेतों में उतरे दिल्ली से सकुशल रवाना होने के बाद दोनों ही लखनऊ पहुंचने से पहले खेतों के बीच चेन खींचकर उतर गए। तय योजना के अनुसार वहां पर पहले से दो मोटरसाइकिल के साथ कार्यकर्ता मौजूद थे। उनके साथ दोनों मोटरसाइकिल से रात में ही अयोध्या पहुंच गए।
कुछ स्थानों पर पुलिस वालों ने रोका भी तो पूर्व डीजीपी को देख रोकने की बजाय सुरक्षित रास्ते पर भेज दिया।
1950 बैच के आइपीएस श्रीश दीक्षित 1982-84 तक प्रदेश के डीजीपी रहे थे। साथ ही फैजाबाद के भी एसपी रह चुके थे।–
सबसे पहले सुल्तानपुर के संघ प्रचारक महेश नारायण सिंह अयोध्या पहुंचे। संतों से मिलकर आंदोलन को बड़ा रूप देने की संभावनाएं तलाशनी शुरू की। काफी प्रयासों के बाद पहली बैठक सुग्रीव किला में हुई और पहली बार राम जन्मभूमि मुक्ति का प्रस्ताव पारित किया गया