श्रुतम्-1185 “सबके राम-2”

राम कौन हैं? क्या हैं?
सम्भवतः यह प्रश्न ऋषि वाल्मीकि को भी मथ रहा था….।
“चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः।” जीवन में चरित्र से युक्त कौन है? जो सभी प्राणियों के कल्याण में रुचि रखता हो।जो देखने में भी सुखद और प्रियदर्शी हो।

देव, दानवों, यक्षों, योद्धाओं, ऋषियों, संतों, मुनियों की भीड़ के बीच यह प्रश्न वाल्मीकि ने नारद जी से किया था। ऐसा बेदाग चरित्र, जो सभी प्राणियों के हित में हो और उसे विद्वानों का भी समर्थन मिले।
वाल्मीकि का यह प्रश्न राम की सार्वकालिक स्वीकार्यता का मूल है।

वाल्मीकि के लिए चरित्र और धर्म पर्याय हैं। इसलिए राम धर्म के विग्रह हैं, क्योंकि उनसे ऊँचा चरित्र किसी और का नहीं है। रामतत्त्व का प्रवाह और पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसकी बढ़ती प्रतिष्ठा ही भारतीय संस्कृति का प्राण है। राम का चरित्र भारतीय अस्मिता का चरित्र बना। व्यक्ति श्रेष्ठ राष्ट्र के रूप में पहचाना गया।

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