संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की ३ दिन उपवास बाद रात्रि २:३५ बजे चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ (झारखंड) में समाधि हो गई हैं।
“विदेशी भाषा, वेशभूषा, खान पान और रहन सहन के साथ स्वतंत्रता का झूठा अभिमान मत करो। मर्यादा सिखाने वाली संस्कृति को सुरक्षित करने का स्वाभिमान जागृत करो, यही एक मात्र देश भक्ति है”-
पूज्य मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के अमृत वचन ने समाज को सदैव सही राह दिखाई हैं।
जीवन परिचय:
आपका जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। पिता श्री मल्लप्पा थे, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी, जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी, जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था।
विद्यासागर जी के परिवार में बड़े भाई ही गृहस्थ हैं। उनके अलावा घर के सभी लोग संन्यास ले चुके हैं। आपके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और क्रमश: मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी एवं कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा में अनेक रचनाएं की हैं। सो से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया हैं। आपके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। काव्य मूक माटी की भी रचना की। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता हैं।
आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं। आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका हैं। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
आपने जीवन में अनेक कठोर व्रत ले रखे थें। आपकी प्रेरणा से स्थापित गौ-शालाओं से हजारों गायों का संरक्षण हुआ। आधुनिक विद्यालयों से हजारो बालिकाओं को संस्कारवान शिक्षा मिल रही हैं।
इतना कठिन जीवन के बाद भी मुख-मुद्रा स्वर्ग के देव सी दिखाई पड़ती….
नमोस्तु गुरूदेव जी