परावर्तन में सक्रिय जुगलकिशोर जी “5 मई/जन्म-दिवस”


परावर्तन में सक्रिय जुगलकिशोर जी “5 मई/जन्म-दिवस”

राजस्थान की वीरभूमि ने जहां अनेक वीरों, वीरांगनाओं, बलिदानियों एवं त्यागियों-तपस्वियों को जन्म दिया है, वहां संघ कार्य के लिए अनेक जीवनव्रती प्रचारक भी दिये हैं। उनमें से ही एक श्री जुगलकिशोर जी का जन्म पांच मई, 1947 को जिला सीकर के लोसल ग्राम में श्री चांदमल अग्रवाल एवं श्रीमती मोहिनी देवी के घर में हुआ था।

चार भाई और दो बहिनों के बीच सबसे छोटे जुगल जी के घर का वातावरण संघमय था। गांव में शाखा लगती थी। अतः विद्यार्थी जीवन में ही वे अपने बड़े भाई के साथ सायं शाखा जाने लगे। शाखा के रोचक एवं संस्कारप्रद खेल, गीत, वहां सुनाई जाने वाली कहानी एवं वीरगाथाओं से प्रेरित होकर कक्षा दस में पढ़ते हुए ही उन्होंने प्रचारक बनने का निश्चय कर लिया।

अपनी पूर्व विश्वविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण कर वे 1966 में प्रचारक बन गये। चिकित्सा विज्ञान में रुचि के कारण उन्होंने प्रचारक रहते हुए पत्राचार से होम्योपैथी का प्रशिक्षण भी लिया। प्रारम्भ में उन्हें रांची (झारखंड) भेजा गया। उन्होंने खूंटी, गुमला आदि वनवासी क्षेत्रों में कई शाखाएं प्रारम्भ कीं। वहां ईसाई गतिविधियां देखकर संघ कार्य करने का उनका निश्चय और दृढ़ हो गया। दो वर्ष वहां रहकर 1968 में उन्हें फिर राजस्थान बुला लिया गया।

इसके बाद जुगलकिशोर जी का कार्यक्षेत्र मुख्यतः राजस्थान ही रहा। वे भरतपुर, सवाई माधोपुर आदि में जिला व फिर विभाग प्रचारक रहे। 1988 से 96 तक जयपुर विभाग प्रचारक रहते हुए उनके पास कई वर्ष तक ‘ज्ञान गंगा प्रकाशन’ का काम भी रहा। यह एक प्रसिद्ध प्रकाशन है, जिसने संघ विचार की सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित की हैं। जुगल जी ने भी उन पुस्तकों के लिए सामग्री संकलन, लेखन एवं सम्पादन में योगदान दिया।

आपातकाल के दौरान जुगल जी भरतपुर में भूमिगत रहकर कार्य करते रहे। योजनाबद्ध रूप से कुछ ही देर में पूरे नगर में तानाशाही विरोधी पत्रक बंटवाने में उन्हें महारत प्राप्त थी। इससे देशभक्तों को प्रसन्नता होती थी; पर पुलिस एवं कांग्रेसी चमचों के चेहरे काले पड़ जाते थे। अतः पुलिस उनके पीछे पड़ गयी। सितम्बर में उन्हें गिरफ्तार कर पहले डी.आई.आर. और फिर मीसा जैसे काले कानून लगाकर जेल में डाल दिया गया, जहां से उन्हें इंदिरा गांधी के पराभव एवं संघ से प्रतिबन्ध हटने के बाद ही मुक्ति मिली। जेल से आकर अनुकूल माहौल का लाभ उठाते हुए वे दूने उत्साह से संघ कार्य में जुट गये।

1996 में जुगल जी को विश्व हिन्दू परिषद का जयपुर प्रांत का संगठन मंत्री का कार्य दिया गया। राजस्थान में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे मुसलमान रहते हैं, जो स्वयं को पृथ्वीराज चैहान का वंशज मानते हैं। उनके रीति-रिवाज, वेशभूषा तथा खानपान हिन्दुओं से काफी मिलता है। वे वापस हिन्दू धर्म में आना भी चाहते हैं; पर किसी हिन्दू संस्था ने ऐसा प्रयास नहीं किया। इस नाते विश्व हिन्दू परिषद ने ‘धर्म प्रसार’ नामक आयाम का गठन किया। इससे परावर्तन के काम ने गति पकड़ ली। वर्ष 2000 ई. में जुगलकिशोर जी को भी केन्द्रीय सहमंत्री के नाते इसी काम में लगाया गया।

वर्ष 2005 में उन्हें पूरे राजस्थान का क्षेत्र संगठन मंत्री बनाया गया। 2009 से धर्म प्रसार के केन्द्रीय मंत्री के नाते वे पूरे देश में घूमकर परावर्तन कार्य करा रहे हैं। परावर्तित गांवों में कुछ स्थायी गतिविधियां चलाने के लिए वे गांव में मंदिर की स्थापना कराते हैं। इनसे सत्संग, एकल विद्यालय, बाल संस्कार केन्द्र, साप्ताहिक चिकित्सा केन्द्र आदि का संचालन होता है।

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