अहिल्या बाई होलकर ने एक देश, एक राष्ट्र, एक समाज और एक संस्कृति के भाव को विकसित किया – जसवंत खत्री

अहिल्या बाई होलकर ने एक देश, एक राष्ट्र, एक समाज और एक संस्कृति के भाव को विकसित किया – जसवंत खत्री

चित्तौडगढ़।  पुण्यश्लोक देवी अहिल्या बाई होलकर विचार गोष्टी इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी ऑडिटोरियम  में आयोजित किया गया। महिला समन्वय की विभाग संयोजिका प्रियंका जैन ने बताया कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर के जन्म के त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में विचार गोष्ठी महिला समन्वय चित्तौड़गढ़ विभाग के तत्वावधान में शुक्रवार को चित्तौड़गढ़ में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता जसवंत जी खत्री क्षेत्रीय कार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्य वक्ता रहे, जसवंत खत्री ने अपने उद्बोधन में बताया कि देवी अहिल्याबाई को महारानी से संबोधित नहीं किया जाता है जबकि उन्हें आदर के साथ लोकमाता के नाम से संबोधित किया जाता है और वे एकमात्र इस पूरे विश्व में है जिनके नाम के आगे पुण्यश्लोक लगा हुआ है क्योंकि उन्होंने पूरे जीवन में पुण्य कर्म के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं किए हैं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जसवंत जी खत्री ने अपने उद्बोधन में लोकमाता देवी अहिल्याबाई के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने बताया कि हमारे देश में हजारों माताओं ने श्रेष्ठ नेतृत्व दिया है, वर्तमान में भी कला में, विज्ञान में, सेवा में, व्यापार में, नेतृत्व में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज हम देवी अहिल्याबाई होलकर का 300 वा जन्म दिवस मना रहे हैं साथ ही रानी दुर्गावती का भी 500 वा जन्म वर्ष चल रहा है। भारत के इतिहास में मातृशक्ति ने हमेशा अपना समर्पण दिया है। यदि इतिहास में देवी शकुंतला नहीं होती तो भरत नहीं होते और यदि मां जीजाबाई नहीं होती तो शिवाजी नहीं होते।  लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने संपूर्ण जीवन में रकुरीतियों के विरुद्ध अपने स्वर मुखर किए हैं जिसमें प्रमुखता के साथ उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया और महिलाओं को इसके बारे में जागरूक किया, दुर्भाग्य से उनके पति खंडेराव का निधन होने पर भी उनके ससुर मल्हार राव की सहमति से सती नहीं होने का फैसला किया और समाज में इस बदलाव को अग्रेषित किया। उन्होंने अपने राज्य की सीमा का उल्लंघन करते हुए अपने जीवन काल में डेढ़ सौ से अधिक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, जिसमें काशी का मंदिर और सोमनाथ का मंदिर प्रमुख है। उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन में जाति भेदभाव का कोई नामोनिशान नहीं था, जीवन भर समाज की चिंता, समाज एक रस रहे जिसकी चिंता, समाज सुरक्षित रहे यह भाव रखते हुए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत मां भारती और देवी अहिल्याबाई होलकर  के चित्र के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर की गई। कार्यक्रम की मुख्य आकर्षण रंगा स्वामी बस्ती की बालिकाओं द्वारा नाट्य प्रस्तुति रही। अहिल्याबाई के जीवन की विभिन्न घटनाओं का उन्होंने सुंदर नाट्य प्रदर्शन कर दर्शकों का मन मोह लिया और वाह भव्य चित्र प्रदर्शनी भी रही । कार्यक्रम में आभार प्रस्ताव जया जी तोषनीवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया।

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